जलवायु परिवर्तन के कारण लुप्त हो रहे मौस प्लांट्स

नैनीताल(आरएनएस)। उत्तराखंड में लगातार जलवायु परिवर्तन के चलते ग्रीन ग्रुप (मौस प्लांट्स) तेजी से विलुप्त हो रहे हैं। भूमि में नमी की कमी के कारण इन पौधों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। कुमाऊं विवि के एक शोध में यह परिणाम सामने आए हैं। पिछले 40 वर्षों से मौस प्लांट्स पर शोध कर रहे प्रो. एसडी तिवारी के अनुसार, इन पौधों के संरक्षण की अत्यंत आवश्यकता है। मौस प्लांट्स मुख्यतः नमी वाले क्षेत्रों में स्वयं उत्पन्न होते हैं। ये पौधे विशेष रूप से प्रकृति प्रदत्त होते हैं और इनमें जड़ों की बजाय रोम पाए जाते हैं। प्रो. तिवारी के शोध के अनुसार, उत्तराखंड के पश्चिमी हिमालयी क्षेत्रों में मौस प्लांट्स की करीब 700 से 800 प्रजातियां पाई जाती थीं। कभी नैनीताल जिले को मौस प्लांट्स का गढ़ कहा जाता था, लेकिन बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के कारण अब ये लुप्त होने लगे हैं। मौस प्लांट्स अपने वजन से 20 गुना अधिक जल को स्टोर करने की क्षमता रखते हैं, जिससे गर्मियों में ये ठंडक प्रदान करते हैं। नैनीताल के लिंगधार-खुर्पाताल क्षेत्र में इन पौधों के संरक्षण के लिए मौस गार्डन स्थापित किया गया है, जहां लगभग 200 प्रकार के मौस प्लांट्स संरक्षित किए हैं। इन पौधों के औषधीय गुण भी महत्वपूर्ण हैं। स्पैगनम ब्रीड नामक मौस प्लांट से घाव भरने की दवा तैयार की जाती है। ये पौधे एंटी-बैक्टीरियल, एंटीबायोटिक और प्राकृतिक फिल्टर के रूप में भी काम करते हैं। जलवायु परिवर्तन और बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए, इन मौस प्लांट्स का संरक्षण एवं संवर्धन आवश्यक हो गया है, ताकि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखा जा सके।

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