डब्ल्यूआइआइ के विज्ञानी भी अलर्ट मोड में

देहरादून। विभिन्न राज्यों में बर्ड फ्लू की दस्तक के बाद भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआइआइ) के विज्ञानी भी अलर्ट मोड में आ गए हैं। अभी भले ही वह सीधे तौर पर बर्ड फ्लू के शोध संबंधी गतिविधि से नहीं जुड़ पाए हैं, मगर भविष्य के किसी भी खतरे से निपटने के लिए तैयार दिख रहे हैं।
डब्ल्यूआइआइ के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. एस सत्यकुमार का कहना है कि बर्ड फ्लू का जितना खतरा मुर्गियों और बतखों पर मंडरा रहा है, उतना ही खतरा वन्य पक्षियों पर भी बना है। डॉ. सत्यकुमार के मुताबिक अभी किसी वन्य पक्षी में बर्ड फ्लू के प्रमाण नहीं मिले हैं। हालांकि, कुछ जगहों से पक्षियों के मरने की जानकारी जरूर मिल रही है। यदि यह बीमारी वन्य पक्षियों में देखने को मिली तो इसका व्यापक असर हो सकता है।
उधर, संस्थान के ही वरिष्ठ विज्ञानी डॉ. वाईवी झाला इस आशंका से भी इन्कार नहीं करते हैं कि यह बीमारी पक्षियों के अलावा अन्य वन्यजीवों में नहीं हो सकती है। उनका कहना है कि यह मुर्गियों और बतख से मनुष्य के शरीर में प्रवेश कर सकती है तो संक्रमित वन्य पक्षियों का शिकार करने के बाद संबंधित जानवर भी इसकी चपेट में आ सकते हैं। यह बात और है कि अभी इस तरह का कोई मामला सामने नहीं आया है। फिर भी सभी तरह की सूचनाओं को गंभीरता से लिया जा रहा है।
देहरादून के मालसी स्थित देहरादून जू में बर्ड फ्लू के अलर्ट के बाद चिकन और अंडा बंद कर दिया गया है। हालांकि, यहां चिकन बेहद कम मात्रा में ही मंगाया जाता था। जू के चिकित्सक राकेश नौटियाल ने बताया कि विश्व में बर्ड फ्लू के मामले सामने आने के बाद यहां करीब एक सप्ताह पूर्व चिकन और अंडा बंद कर दिया गया था। बताया कि गुलदार और मगरमच्छ समेत अन्य मांसाहारी जीवों को मटन और बीफ ही अधिक दिया जाता है। चिकन बेहद कम मात्रा में मंगाया जाता है। इसके अलावा अंडा भी पक्षियों में कैल्सियम और प्रोटीन की कमी दूर करने के लिए मंगाया जाता था।


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