पंजाब में फर्जी एनकाउंटर केस में 32 साल बाद सजा, पूर्व एसपी-डीएसपी समेत पांच दोषियों को उम्रकैद

चंडीगढ़ (आरएनएस)। पंजाब के तरनतारन में वर्ष 1993 के फर्जी मुठभेड़ मामले में दोषी पंजाब पुलिस के पूर्व एसएसपी और डीएसपी सहित पांच पुलिस अधिकारियों को ष्टक्चढ्ढ की स्पेशल अदालत ने सजा सुनाई। कोर्ट ने रिटायर्ड एसएसपी भूपेंद्रजीत सिंह, रिटायर्ड डीएसपी दविंदर सिंह समेत 5 पुलिस अफसरों को उम्रकैद की सजा सुनाई है।
इन सभी पर 7 लोगों की हत्या और आपराधिक साजिश यानी ढ्ढक्कष्ट की धारा 302 और 120-क्च के तहत मुकदमा चला। पहले इस केस में 10 पुलिस अफसरों और कर्मचारियों को आरोपी बनाया गया था, लेकिन ट्रायल के दौरान 5 की मौत हो गई। पीड़ित परिवारों के वकील सरबजीत सिंह वेरका ने बताया कि जांच पूरी करने के बाद सीबीआई ने 2002 में भूपिंदरजीत सिंह डीएसपी गोइंदवाल, इंस्पेक्टर के खिलाफ आरोप पत्र पेश किया था। गुरदेव सिंह एसएचओ सरहाली, एसआई ज्ञान चंद, एएसआई देविंदर सिंह, एएसआई गुलबर्ग सिंह, इंस्पेक्टर सूबा सिंह एसएचओ थाना वेरोवाल, एएसआई जगीर सिंह, एएसआई रघुबीर सिंह, एचसी मोहिंदर सिंह, एचसी अरूर सिंह को नामजद किया गया। लेकिन 2010-21 की अवधि के दौरान इस मामले की सुनवाई रुकी रही और इस अवधि के दौरान पांच आरोपियों की मृत्यु हो गई।
मामला 1993 का है, जिसमें 7 लोगों को 2 अलग-अलग मुठभेड़ में मरा हुआ दिखाया गया था। जबकि इनमें 4 स्पेशल पुलिस ऑफिसर के पद पर तैनात थे। दोषियों ने 27 जून 1993 को लोगों को उनके घरों से उठाकर कई दिनों तक अवैध हिरासत में रखा और उन पर अत्याचार किए। 28 जुलाई 1993 को तत्कालीन डीएसपी भूपेंद्रजीत सिंह के नेतृत्व में फर्जी मुठभेड़ को अंजाम दिया गया। तरनतारन के थाना वैरोवाल व थाना सहराली में दो अलग-अलग फर्जी पुलिस मुठभेड़ की स्नढ्ढक्र दर्ज की गईं। 7 लोगों को फेक एनकाउंटर में मार दिया। सुप्रीम कोर्ट के 12 दिसंबर 1996 के आदेश के बाद यह केस ष्टक्चढ्ढ को सौंपा गया। 2 जुलाई 1993 को पंजाब पुलिस ने दावा किया था कि 3 लोग शिंदर सिंह, देसा सिंह और सुखदेव सिंह सरकारी हथियारों के साथ फरार हो गए। इसके 10 दिन बाद यानी 12 जुलाई को तत्कालीन डीएसपी भूपेंदरजीत सिंह और इंस्पेक्टर गुरदेव सिंह के नेतृत्व में पुलिस ने एक मुठभेड़ की कहानी बनाई।
पुलिस ने 28 जुलाई 1993 को फर्जी मुठभेड़ को सही ठहराने के लिए एक बोल्ट एक्शन राइफल, एक 12 बोर एसबी बंदूक और एक 303 राइफल के साथ इस्तेमाल और जिंदा कारतूस की बरामदगी दिखाते हुए मेमो तैयार किया और मुठभेड़ की कहानी गढ़कर उपरोक्त व्यक्तियों की हत्याओं को छिपाने के लिए 28 जुलाई 1993 को थाना वेरोवाल तरनतारन में एक झूठा मामला दर्ज करवाया और झूठे दस्तावेज तैयार किए। पुलिस ने कहा कि डकैती के एक मामले में वसूली के लिए मंगल सिंह नामक व्यक्ति को घड़का गांव ले जाया जा रहा था, तभी रास्ते में आतंकवादियों ने हमला कर दिया। पुलिस के मुताबिक, दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में मंगल सिंह, देसा सिंह, शिंदर सिंह और बलकार सिंह मारे गए। लेकिन जब मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई, तो 2 पॉइंट्स के आधार पर समझ आया कि मुठभेड़ फर्जी थी।