
अल्मोड़ा। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान में गुरुवार को ‘भारतीय हिमालय क्षेत्र–2047: पर्यावरण संरक्षण एवं सतत सामाजिक–आर्थिक विकास’ विषय पर तीन दिवसीय हिमालयन कॉन्क्लेव शुरू हुआ। कार्यक्रम संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के सहयोग से आयोजित हो रहा है और 15 नवम्बर तक चलेगा। इसका उद्देश्य विकसित भारत @2047 के अनुरूप हिमालयी क्षेत्र के सतत विकास की रूपरेखा तैयार करना है। उद्घाटन पर्यावरण मंत्रालय की संयुक्त सचिव नामिता प्रसाद ने किया। उद्घाटन सत्र में वीपीकेएएस निदेशक डॉ. लक्ष्मीकांत, सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. एस.पी.एस. बिष्ट, लद्दाख विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. साकेत कुशवाहा और पूर्व कुलपति प्रो. एस.पी. सिंह उपस्थित रहे। निदेशक-प्रभारी डॉ. आई.डी. भट्ट ने कहा कि भारतीय हिमालय क्षेत्र देश के 16 प्रतिशत भू-भाग में फैला है और जैव विविधता, हिमनदों और प्रमुख नदी तंत्र का आधार है। उन्होंने बदलती पर्यावरणीय चुनौतियों को देखते हुए 1992 के हिमालयन एक्शन प्लान को अद्यतन करने की आवश्यकता बताई। डॉ. भट्ट ने ‘हिमालय/माउंटेन एकेडमी ऑफ साइंसेज’ और ‘राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण रिपोर्ट’ तैयार करने का प्रस्ताव रखा। विशेष वक्ताओं ने क्षेत्र के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सामुदायिक आधारित इको-टूरिज्म, हरित प्रौद्योगिकी, जल और भूमि प्रबंधन, तथा अंतर-देशीय शोध नेटवर्क की जरूरत पर जोर दिया। मुख्य अतिथि नामिता प्रसाद ने कहा कि कॉन्क्लेव के सुझावों को राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय नीतियों में शामिल किया जाना चाहिए। कॉन्क्लेव में पाँच पूर्ण और सोलह समानांतर सत्रों में जलवायु सहनशीलता, जैव विविधता संरक्षण, हरित ऊर्जा, सतत आजीविका, आपदा जोखिम न्यूनीकरण और पर्यटन जैसे विषयों पर चर्चा होगी। उद्घाटन सत्र में 75 संस्थानों के करीब 200 प्रतिभागियों ने 11 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों से हिस्सा लिया।




