भाजपा आगे बढ़ाएगी बिहार-उत्तराखंड का सिलसिला

बंगाल में भी लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन न दुहरा पाने के बाद पार्टी सतर्क
चुनावी राज्यों को छोड़ कर अन्य सभी राज्यों की करेगी समीक्षा
जरूरत के अनुरूप बिहार-उत्तराखंड की तर्ज पर फैसला करेगी भाजपा

नई दिल्ली, (आरएनएस)। पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से भाजपा सकते में हैं। दरअसल अन्य राज्यों की तरह इस राज्य मेंं भी पार्टी लोकसभा में हासिल वोट का बराबरी नहीं कर पाई। पार्टी मानती है कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण मजबूत चेहरे का अभाव है। भविष्य में इस स्थिति से बचने के लिए पार्टी आने वाले समय में बिहार और उत्तराखंड की तरह बदलाव का सिलसिला तेज करेगी।
पार्टी के एक वरिष्ठï नेता के मुताबिक हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड के नतीजे आने के बाद मंथन का सिलसिला शुरू हुआ था। इसी कारण बिहार में परिणाम आने के बाद नेतृत्व ने सुशील मोदी, नंदकिशोर यादव सहित अन्य वरिष्ठï नेताओंं पर नए चेहरों को तरजीह दी। उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन किया गया। अब आने वाले समय में चुनावी राज्य उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश को छोड़ कर अन्य सभी राज्योंं की स्थिति की समीक्षा कर उचित निर्णय लिया जाएगा।
सात साल से राज्य चिंता के विषय
दरअसल बीते साल सालों में भाजपा लोकसभा का दो चुनाव लड़ी। इसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में असम और त्रिपुरा को छोड़ कर पार्टी कहीं भी लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन नहीं दोहरा पाई। खासतौर सत्ता वाले राज्योंं में लोकसभा के मुकाबले विधानसभा चुनाव में वोटों मेंं ज्यादा गिरावट देखी गई। बीते साल झारखंड में पार्टी के वोटों में 19 फीसदी तो झारखंड में 17 फीसदी का नुकसान हुआ। इसके अलावा छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, गुजरात और कर्नाटक में क्रमश: 10, 17, 13, 9, 5, 14, 10 और 7 फीसदी मतोंं का नुकसान हुआ।
चेहरा समस्या
पार्टी ने इस साल के शुरू में हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र के नतीजे की समीक्षा की थी। सूत्रों के मुताबिक आकलन यह था कि सत्तारूढ़ राज्यों में सरकार के मुखिया लोगोंं की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहे। मसलन झारखंड में खुद अपना चुनाव हारने वाले सीएम रघुवर दास के खिलाफ भयानक नाराजगी भारी पड़ी। हरियाणा में सीएम खट्टïर उम्मीदोंं पर खरा नहीं उतरे। तब तय किया गया था कि बारी-बारी से सभी राज्योंं की समीक्षा कर इस स्थिति मेंं बदलाव के लिए जरूरी निर्णय लिए जाएं। हालांकि बीच में कोरोना महामारी के प्रकोप के कारण इस पर गंभीर चर्चा नहीं हुई।
बंगाल के नतीजे से सतर्क
बंगाल में भी इसी कहानी की पुनरावृत्ति के बाद भाजपा सतर्क है। पार्टी को यहां भी सारी ताकत और संसाधन झोंकने के बावजूद लोकसभा के मुकबले तीन फीसदी कम वोट हासिल हुए। पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि मजबूत चेहरे के अभाव में पार्टी ममता बनर्जी के बंगाल अस्मिता के सियासी दांव की काट करने में असफल रही। क्योंकि राज्य में एक भी स्थानीय चेहरा ऐसा नहींं था जिस पर पार्टी अपना दांव लगा पाती। पार्टी साल 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव की तरह ही मोदी-शाह की जोड़ी पर आश्रित रह गई।
मोदी का ब्रांड वैल्यु कायम
भाजपा भले ही पश्चिम बंगाल में चुनाव हार गई, मगर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता में कमी नहीं आई है। यह कई बार साबित हुआ है। मसलन पार्टी को बीते लोकसभा चुनाव के मुकाबले साल 2019 के चुनाव में ज्यादा मत और ज्यादा सीटें हासिल हुई। पार्टी मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में विधानसभा चुनाव हारी, मगर इसके कुछ महीने बाद हुए लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में विपक्ष का करीब-करीब सूपड़ा साफ कर दिया। लोकसभा चुनाव में दिल्ली में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया, मगर विधानसभा चुनाव में पार्टी ने शर्मनाक हार झेली। जाहिर तौर पर खास तौर से बीते लोकसभा चुनाव के बाद राज्योंं की राजनीति में एक नया ट्रेंड आया है। सभी राज्योंं में मतदाताओं का एक ऐसा वर्ग तैयार हुआ है जो लोकसभा चुनाव में तो पीएम मोदी के नाम पर भाजपा को वोट करता है, मगर विधानसभा चुनाव में मोदी की जगह पार्टी के राज्य के चेहरे के अनुरूप मतदान करता है।


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