जान जोखिम में उम्मीद की किरण लेने निकला सूरज
देहरादून। पोकलैंड ऑपरेटर सूरज सरखेत में जान जोखिम में डालकर अपनों को तलाश रहा है। जब दूसरे ऑपरेटरों ने बांदल के खतरनाक बहाव, पथरीले रास्ते पर पोकलैंड मशीन ले जाने से हाथ खड़े कर दिए, तब सूरज ने अकेले ही मशीन को सरखेत पहुंचा दिया। सूरज के चाचा-चाची के यहां मलबे में दबे होने की आशंका है।
दुगड़ा निवासी सूरज राणा चमोली की एक कंपनी में पोकलैंड ऑपरेटर है। उसके चाचा राजेंद्र सिंह राणा (40) जन्माष्टमी पर पत्नी अनीता (35) के साथ सरखेत रिश्तेदारी में आए थे। शनिवार रात आपदा के बाद से दंपति लापता हैं। दोनों के यहां मकान के मलबे में दबे होने की आशंका है। चाचा-चाची के मलबे में दबे होने की सूचना मिलते ही सूरज चमोली से देहरादून आ गया। सोमवार को सूरज कुमाल्डा लालपुल पर था। इस दौरान यहां मलबा हटाने के लिए एक पोकलैंड मशीन पहुंच गई। लालपुल से आगे करीब एक किमी सड़क पूरी तरह से खत्म हो चुकी है, चारों तरफ नदी का मलबा, बोल्डर फैले हैं।
ऐसे हालात में बाकी ऑपरेटरों ने यहां से पोकलैंड मशीन सरखेत तक ले जाने के लिए मना कर दिया। सूरज को जब ये पता चला तो वो मशीन ले जाने के लिए तैयार हो गया। इसके बाद वो नामुमकिन से रास्ते पर मशीन लेकर आगे बढ़ा। सूरज ने पोकलैंड नदी में पत्थरों के बीच उतार दी। तेज बहाव को काटते, बड़े बोल्डरों को हटाते हुए सूरज सरखेत पहुंच गया। ऐसे वक्त में जब परिवार का कोर्इ सदस्य लापता हो, तो खुद को संभालना ही मुश्किल हो जाता है। सूरज के हौसले और साहस की हर कोई मरीद हो गए है।