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‘वह फिर सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर आया’ ने खूब वाहवाही लूटी

RNS INDIA NEWS 08/09/2021
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आरएनएस ब्यूरो सोलन।

भाषा एवं संस्कृति विभाग सोलन के तत्वावधान में बुधवार को विभागीय सभागार में हिन्दी पखवाड़ा मनाया। इसमें जिला सोलन के वरिष्ठ साहित्यकारों,नवोदित कवियों और लेखकों ने भाग लिया। हिंदी पखवाड़ा कार्यक्रम को दो सत्रों में विभाजित किया गया था। प्रथम सत्र में मातृ भाषा हिंदी के संरक्षण और संवर्धन विषय पर विस्तृत परिचर्चा हुई। जबकि दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी का आयोजन हुआ,जिसमें कवियों ने अपनी हिन्दी रचनाएं प्रस्तुत कर पाश्चात्य सभ्यता के मकडज़ाल में फंसी युवा पीढ़ी को हिंदी भाषा को जीवन में आत्मसात करने के लिए प्रेरित किया।
हिंदी पखवाड़े का शुभारंभ विद्या की देवी मां सरस्वती के समक्ष दीपप्रज्जवलित कर किया गया। इसके उपरांत जिला भाषा अधिकारी सोलन ने कार्यक्रम में जिला के विभिन्न क्षेत्रों से पहुंचे साहित्यकारों, कवियों, लेखकों व कलाकारों का स्वागत किया। इस मौके पर परिचर्चा में भाग लेते हुए प्रख्यात व्यंग्यकार डा. अशोक गौत्तम ने हिन्दी पर आधारित शोध पत्र प्रस्तुत किया। उन्होंने वर्तमान परिपेक्ष्य में हिन्दी भाषा किस दौर से गुजर रही है व इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे सहित कई महत्वपूर्ण बिंदुओं को अपने शोध पत्र के माध्यम से प्रस्तुत किया।
परिचर्चा में भाग लेते हुए प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकार कुल राजीव पंत ने कहा कि सरकारी स्तर पर हिन्दी के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए जो प्रयास किए गए है वह नाकाफी है। कुलराजीव पंत ने कहा कि वर्तमान में हिन्दी लेखन के लिए राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर बड़े-बड़े पुरस्कार दिए जा रहे हैं। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि मातृ भाषा हिन्दी किस दौर से गुजर रही हैं। पंत ने कहा कि हिन्दी के प्रचलन में जो कमी आई है उसके लिए हम सभी कहीं न कहीं दोषी है।
उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी जिस भाषा को प्रयोग में ला रही हैं वह समाज और राष्ट्र को एक दूसरे से अलग करने में सहयोग कर रही है। उन्होंने कहा कि संस्कारहीन भाषा अवनति का प्रतीक हैं। इसलिए परिजनों का नैतिक दायित्व हैं कि वह अपने बच्चों में शुरू से हिंदी भाषा के प्रति जागरूक करें। उन्होंने कहा कि अन्य सभी भाषाओं का ज्ञान होना भी जरूरी है,लेकिन अपनी मातृ भाषा हिंदी से विमुख होना किसी भी नजरिये से ठीक नहीं हैं।
इस मौके पर परिचर्चा में भाग लेते हुए पत्रकार शशिभूषण पुरोहित ने कहा कि हिन्दी हमारी विरासत हैं। इस विरासत को संजोकर रखना हम सभी का कर्तव्य भी है। युवा पीढ़ी में हिन्दी भाषा को अपनाने और इसे दिनचर्या में इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। संस्कृत विद्वान हरिदत्त शर्मा ने भी परिचर्चा में भाग लिया व अपने विचारों को रखा। इसके बाद गोष्ठी के दूसरे सत्र में साहित्यकारों व कवियों ने अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर समाज को हिन्दी भाषा को अपनाने और इसकी प्राचीन सभ्यता और संस्कृति के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया।
वरिष्ठ साहित्यकार डा. प्रेमलाल गौत्तम ने कवि गोष्ठी में भाग लेते हुए कहा कि सिन्ध में सिन्धी न हो और सधवा के बिन्दी न हो,धिक्कार है मेरे बन्धुओं,यदि हिन्द में हिन्दी न हो,रचना प्रस्तुत की। जबकि कवयित्री सुनीता शर्मा अपनी रचना में कहा कि तिरंगे में लिपटे शहीद के लिए वो भीड़ सलाम बन जाती है, मैं गरीब हूँ पर बेखबर नहीं, मैं तो सब जानता हूँ, इसके बाद सुखदर्शन ठाकुर ने अपनी कविता प्रस्तुत करते हुए कहा कि बात करते हो दोस्ती की और दिल में रखते हो मलाल,जाते हो काशी,काबा और मदीना, करके इन्सानियत को हलाल,।
शशि भूषण पुरोहित ने वह फिर सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर आया, झक्क सफेद चांदी से लदे पहाड़ अपने हिस्से की धूप भी यहीं लुटाना चाहता है यह नादान सैलानी, रचना प्रस्तुत की। इसी तरह कवि संजीव अरोड़ा ने बढ़ चले कदम अंतरिक्ष की ओर, सुना है चांद पर बस्ती बसाएंगे कविता प्रस्तुत की। अर्पित सिसोदिया ने शीशीशी कुछ पूछे तो मत बताना,क्योंकि हमें शर्म आती है रचना प्रस्तुत की। इसके बाद वरिष्ठ साहित्यकार केआर करुण ने भाईचारा हिन्दी कहानी को प्रस्तुत किया।
प्रदेश के वरिष्ठ साहित्यकारों में शुमार कुलराजीव पंत ने भीगा छाता कविता प्रस्तुत की। उन्होंने कुछ इस अंदाज में कविता पढ़ी कि तुम्हारे शहर की बरसात में जो छाता भीगा था अभी तक गीला है। कवि हेमंत अत्रि ने कैद सांसे मांग रही अब मास्क से अपनी आजादी रचना प्रस्तुत की। इसी तरह वरिष्ठ साहित्यकार डा.शंकर वासिष्ठ ने सफेद झूठ जब बन जाता है बरगद,कर लेता हॅू कैद अपने आगोर फूटते सत्य अंकुरों को कविता प्रस्तुत कर खूब वाहवाही लूटी। अंत में जिला भाषा अधिकारी सोलन ममता वर्मा ने कार्यक्रम में पहुंचे सभी साहित्यकारों,लेखकों और कवियों का आभार व्यक्त किया। इस मौके पर पत्रकार भाविता जोशी के अलावा भाषा एवं संस्कृति विभाग सोलन का स्टाफ भी मौजूद रहा।

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