उत्तराखंड में पंचायत चुनाव पर रोक बरक़रार, 27 जून को होगी सुनवाई

नैनीताल/देहरादून। उत्तराखंड उच्च न्यायालय में गुरुवार को पंचायती राज चुनाव में आरक्षण अनियमितताओं को लेकर महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ के समक्ष सरकार ने जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम प्रधान की सीटों का पुराना और नया विवरण पेश किया, जबकि याचिकाकर्ताओं ने आरक्षण प्रक्रिया में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए विस्तृत जानकारी दी। मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार सुबह निर्धारित की गई है।

सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से सीएससी चंद्रशेखर रावत ने सभी पंचायती राज सीटों का ब्योरा कोर्ट के समक्ष रखा। वहीं, याचिकाकर्ता के अधिवक्ता शोभित सहारिया ने कहा कि वे नियमों को नहीं, बल्कि ऑफिस मेमोरेंडम को चुनौती दे रहे हैं, क्योंकि आरक्षण में रोटेशन का पालन नहीं हुआ। उन्होंने राज्य की कुल सीटों और उनके आरक्षण का विवरण प्रस्तुत किया। अधिवक्ता अनिल जोशी ने महिला, ओबीसी, एससी, एसटी आदि के लिए आरक्षित सीटों में अनियमितताओं की जानकारी दी।

हाईकोर्ट के अधिवक्ता योगेश पचौलिया ने तर्क दिया कि सरकार जिस आधार पर चुनाव करा रही है, वह रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है, जिसके कारण लोग अपनी आपत्तियां दर्ज नहीं कर पा रहे। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से केवल 10 मिनट का समय मांगकर अपनी बात पूरी करने की अनुमति मांगी।

महाधिवक्ता एसएन बाबुलकर भी सुनवाई के दौरान मौजूद रहे। खंडपीठ ने मामले को गंभीरता से लेते हुए अगली सुनवाई शुक्रवार सुबह के लिए निर्धारित की। यह मामला पंचायती राज चुनावों की पारदर्शिता और आरक्षण प्रक्रिया पर सवाल उठा रहा है।

बता दें कि सोमवार 23 जून को उच्च न्यायालय ने राज्य में पंचायत चुनावों पर अंतरिम रोक लगाते हुए चुनाव कार्यक्रम को फिलहाल के लिए स्थगित कर दिया था। खंडपीठ ने कहा था कि यह रोक अगले आदेश तक प्रभावी रहेगी। कोर्ट यह रोक उन याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान लगाई थी, जिनमें राज्य की चक्रीय आरक्षण व्यवस्था को चुनौती दी गई है।
कोर्ट ने बुधवार को ही सरकार से यह भी पूछा था कि क्या पुराने आरक्षण को दरकिनार करना उचित था और क्या वर्तमान गजट प्रकाशन “साधारण खंड अधिनियम के रूल 22” और “उत्तराखंड पंचायती राज अधिनियम 2016 की धारा 126” के अनुरूप है? यदि यह प्रावधानों के अनुरूप नहीं है, तो फिर गजट की वैधता भी सवालों के घेरे में आ जाती है। गुरुवार को सरकार ने हाईकोर्ट को यह बताते हुए अपनी आरक्षण नियमावली को पूरी तरह सही ठहराया और पंचायत चुनावों पर लगी रोक हटाने की मांग दोहराई। इस पर अदालत ने पूछा कि जनसंख्या के आधार पर आरक्षण कैसे तय किया गया, इसके पीछे का स्पष्ट तर्क क्या है?
राज्य निर्वाचन आयोग ने त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों के लिए अधिसूचना 21 जून को जारी की थी। इसके अनुसार, नामांकन प्रक्रिया 25 जून से शुरू होनी थी, जबकि मतदान दो चरणों—10 और 15 जुलाई को होना था। मतगणना 19 जुलाई को प्रस्तावित थी। इस अधिसूचना के साथ ही राज्य के 12 जिलों में आदर्श आचार संहिता भी लागू हो चुकी थी। अब गेंद न्यायालय के पाले में है और अंतिम निर्णय का इंतजार है, जिसके बाद ही स्पष्ट होगा कि राज्य में पंचायत चुनाव निर्धारित समय पर होंगे या नहीं।

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