शिक्षा निदेशक के फरमान पर शिक्षकों ने जताया कड़ा एतराज

विकासनगर। नव नियुक्त माध्यमिक शिक्षा निदेशक की ओर से सरकार के खिलाफ सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों में बयान देने पर अनुशासनात्मक कार्यवाई करने का फरमान जारी करने पर शिक्षकों ने कड़ा एतराज जताया है। शिक्षकों ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करार देते हुए तानाशाही पूर्ण फरमान बताया। राजकीय शिक्षक संघ के विकासनगर ब्लॉक अध्यक्ष तेजवीर मलिक ने कहा कि शिक्षक समाज का निर्माता होता है और अपनी बात सोच समझ कर ही समाज के सामने रखता है। शिक्षकों ने सरकार की हर अच्छी नीति का समर्थन किया है। कहा कि शिक्षक का दायित्व समाज का सही रास्ता दिखाना होता है। ऐसे में सरकार के किसी गलत फैसले पर अपने विचार रखना भी शिक्षक का दायित्व है। कहा कि लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात रखने का संवैधानिक अधिकार मिला हुआ है। किसी मसले पर सहमत नहीं होने के कारण उसकी आलोचना करना स्वतंत्र लोकतंत्र की पहचान है। उन्होंने कहा कि शिक्षक या अन्य सरकारी कर्मचारी बिना वजह किसी भी मसले पर टिप्पणी नहीं करता है। खासकर शिक्षक समुदाय हर मसले पर सोच समझ कर अपनी राय रखता है। व्यक्तिगत तौर पर कोई नीति या सरकार का मसौदा अगर किसी को पसंद नहीं हो तो उसके विरोध में अपनी बात रखना प्रत्येक नागरिक का दायित्व है, जिससे कि लोकतंत्र की मर्यादा बनी रहे। शिक्षक रमेश कुमार ने शिक्षा निदेशक के इस फरमान पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक प्रणाली में नौकरशाही का तानाशाही पूर्ण फरमान है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में प्रत्येक नागरिक को अपनी बात रखने का अधिकार है। शिक्षक सुधीर ने कहा कि शिक्षा निदेशक के इस फरमान से जाहिर होता है कि वे शिक्षकों का शोषण करना चाहती हैं। किसी मसले पर आलोचना और समर्थन करना स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है। शिक्षा निदेशक के इस फरमान से शिक्षकों को ठेस पहुंची है।

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