सस्ते आयातित खाद्य तेल की वजह से बिनौला, सोयाबीन उद्योग संकट में
नई दिल्ली। सस्ते आयातित तेलों के कारण देशभर के तेल-तिलहन बाजारों में शनिवार को सोयाबीन और बिनौला संयंत्रों पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। इन संयंत्रों को सस्ते आयात के आगे तेल पेराई महंगी बैठने के कारण घाटे में व्यापार करने पर मजबूर होना पड़ रहा है
बाजार सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन प्लांट वालों को सोयाबीन की पेराई करने में प्रति किलो 5-7 रुपये का नुकसान है। यही हाल बिनौला का भी है। सस्ते आयातित तेलों के आगे ये तेल टिक नहीं पा रहे हैं और इन तेलों का कारोबार घाटे का सौदा बन गया है। किसान नीचे भाव में बिनौला और सोयाबीन बेच नहीं रहे क्योंकि उन्होंने पहले ऊंचे भाव पर अपनी उपज बेची थी। इसकी वजह से सोयाबीन तिलहन के दाम में सुधार है। इसी कारण सोयाबीन संयंत्र वालों की मांग के हिसाब से सोयाबीन की उपलब्धता नहीं हो पा रही है।
उन्होंने कहा कि ऐसी स्थिति के बीच महाराष्ट्र सरकार ने किसानों पर ‘स्टॉक लिमिट’ (स्टॉक रखने की निश्चित सीमा) को लागू करने से मना कर दिया है। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि देश अपनी खाद्य तेल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए लगभग 75-80 प्रतिशत आयात पर निर्भर है और आयातित तेलों पर ‘स्टॉक लिमिट’ लागू नहीं होती, तो ऐसे में किसानों पर ही स्टॉक रखने की सीमा लगाना उनके हित में नहीं होगा।
सूत्रों ने कहा कि किसानों की कम बिक्री करने की वजह से महाराष्ट्र के लातूर में सोयाबीन की जो आवक पहले 75 हजार बोरी की थी वह घटकर लगभग 15,000 बोरी की रह गई है। उन्होंने बताया कि सस्ते आयात की वजह से सोयाबीन तेल कीमतों में गिरावट है।
सूत्रों ने बताया कि सरसों के मामले में मिलों द्वारा अपने स्टॉक बाजार में उतारने की वजह से सरसों तेल-तिलहन के भाव में गिरावट आई है। इसी तरह राजस्थान और गुजरात में मूंगफली की आवक बढऩे की वजह से मूंगफली तेल-तिलहन में गिरावट आई। सस्ते आयात के कारण बिनौला तेल में गिरावट देखने को मिली।