पारंपरिक कृषक प्रजाति ‘झुमकिया मंडुवा’ का राष्ट्रीय पंजीकरण

अल्मोड़ा। उत्तराखंड के पर्वतीय अंचलों की पारंपरिक कृषि विविधता, जो सदियों से स्थानीय लोगों की आजीविका, पोषण और जलवायु अनुकूलन का आधार रही है, अब लुप्त होने के खतरे से जूझ रही है। जलवायु परिवर्तन और आधुनिक कृषि पद्धतियों के बढ़ते प्रभाव के बीच ऐसी परंपरागत फसलों के वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण, कानूनी पंजीकरण और कृषकों के अधिकारों के संरक्षण की आवश्यकता को महसूस किया जा रहा है। इसी कड़ी में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि के तहत ‘झुमकिया मंडुवा’ नामक पारंपरिक रागी प्रजाति को भारत सरकार के पौधा किस्म एवं कृषक अधिकार संरक्षण प्राधिकरण, नई दिल्ली द्वारा 27 मार्च 2025 को कृषक किस्म के रूप में औपचारिक संरक्षण प्रदान किया गया है। यह प्रजाति अल्मोड़ा जनपद के गली बस्यूरा गांव निवासी भूपेन्द्र जोशी द्वारा गैरसरकारी संस्था लोक चेतना मंच, रानीखेत के माध्यम से प्रस्तुत की गई थी। झुमकिया मंडुवा की औसतन परिपक्वता अवधि लगभग 115 दिन होती है और यह किस्म विशेष रूप से उत्तराखंड की पर्वतीय, वर्षा आधारित मध्यम उर्वरता वाली भूमि में सफलतापूर्वक उगाई जाती है। इसके बीजों का रंग तांबे जैसा भूरा होता है और सतह खुरदरी होती है। इस किस्म की विशेष पहचान इसकी बालियों में पाई जाने वाली बहु-स्तरीय अंगुली व्यवस्था, शाखन और अर्ध-सघन बनावट है, जो इसे अन्य किस्मों से विशिष्ट बनाती है। इस उपलब्धि में भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा के निदेशक लक्ष्मीकांत के नेतृत्व में वरिष्ठ वैज्ञानिक अनुराधा भारतीय, लोक चेतना मंच के अध्यक्ष जोगेन्द्र बिष्ट और पंकज चौहान की भूमिका उल्लेखनीय रही। उनके सामूहिक प्रयासों से यह पारंपरिक प्रजाति अब राष्ट्रीय स्तर पर संरक्षण प्राप्त कर चुकी है। झुमकिया मंडुवा के पंजीकरण से जुड़े कृषकों को इस प्रजाति के उत्पादन और विपणन के विशेषाधिकार प्राप्त होंगे। साथ ही, यदि इस किस्म का भविष्य में किसी नई किस्म के विकास में उपयोग किया जाता है, तो उन्हें लाभ साझेदारी और क्षतिपूर्ति का वैधानिक अधिकार भी मिलेगा।

शेयर करें..