आज है निर्जला एकादशी, जानें महत्त्व

अल्मोड़ा। आज(21 जून) निर्जला एकादशी है और इस संबंध में वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य पण्डित मदन मोहन पाठक ने एकादशी का महत्व बताया। अल्मोड़ा के वरिष्ठ ज्योतिषाचार्य पंडित डाo मदन मोहन पाठक ने बताया कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु इस जगत के पालनहार हैं। श्री हरि विष्णु भगवान को सबसे प्रिय उपवास एकादशी व्रत ही है इस व्रत के करने से मनुष्य को धर्म अर्थ काम और मोक्ष की प्राप्ति होती है एकादशी के समान कोई दूसरा व्रत नहीं है यह व्रत भक्तों को दैहिक दैविक भौतिक तापों से बचाता है। अगर शरीर स्वस्थ रहता है तो मनुष्य को एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए हर। पूरे वर्ष भर में 24 एकादशी पढ़ती हैं यदा कदा मलिन मास या अधिमास के कारण इनकी संख्या में परिवर्तन आता है परन्तु सामान्य रूप से इनकी संख्या चौबीस ही है यह प्रत्येक माह के शुक्ल और कृष्ण पक्ष को मनाई जाती हैं। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इसे भीमसेन, भीम और पांडव एकादशी भी कहा जाता है। सभी एकादशियों में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी व्रत का विशेष महत्व है और यह उपवास थोड़ा कठिन भी है क्योंकि इस उपवास में व्रत की समाप्ति तक जल पीना मना है इसलिए इसका नाम निर्जला एकादशी है। कलिकाल में बाजे बिरले लोग ही नियम पूर्वक इस उपवास को कर पाते हैं। वेदव्यास ने बताया कि यह उपवास महाबली भीम ने किया इसी लिए इसका नाम भीमसेन एकादशी भी है जो भी श्रद्धालु इस उपवास को करते हैं उनके सारे पापों का क्षय हो जाता है और पुण्य उदय हो जाते हैं।मात्र ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी व्रत का विधि-विधान से उपवास करने पर सभी एकादशियों के उपवास करने का फल मिल जाता है। जथोनाम तथोगुण के अनुसार इस व्रत के दिन पानी पीना मना है व्रत के पहले साम से ही आप अपना आहार बिहार ठीक रखें। लहसुन, प्याज आदि तमोगुणी वस्तुओं का उपयोग ना करें मन को स्थिर रखें काम वासना से दूर रहें और अंतःकरण शुद्ध रखें। उपवास के पहले दिन जमीन पर शयन करें। और एकादशी तिथि को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान इत्यादि का संकल्प लें और दिन भर भगवान वासुदेव के द्वादश अक्षर ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः’ इस मंत्र का अनगिनत जप करें घर पर गंगा जल का छिड़काव करें तत्पश्चात भगवान विष्णु के अवतार गुण धर्मों का सेवन करें, चीन(घी) का दीपक जलाएं। एकादशी के दूसरे दिन यानी द्वादशी को तपोनिष्ठ ब्रहामण को बुलाकर तथा यथाशक्ति दान करें। ऐसा करने मात्र से आपको धन वैभव शासन सत्ता का लाभ रहेगा।


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