कानून तो लागू हो गया, लेकिन प्रदेश में भिक्षावृत्ति पर रोक नहीं

देहरादून। प्रदेश में लगभग सवा तीन साल पहले भिक्षावृत्ति पर रोक लगाई गई। इसके लिए समाज कल्याण विभाग ने अधिसूचना जारी की। जोर-शोर से प्रचारित किया गया कि उत्तराखंड उन 20 राज्यों और दो संघ शासित प्रदेशों की सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने भिक्षावृत्ति पर प्रतिबंध लगा रखा है। इसके लिए संबंधित अधिनियम में उल्लेख है कि सार्वजनिक स्थलों पर भीख मांगते या देते हुए पकड़े जाने पर यह अपराध की श्रेणी में होगा और इसमें बगैर वारंट गिरफ्तारी भी हो सकती है। दूसरी बार अपराध सिद्ध होने पर सजा की अवधि पांच साल तक हो सकती है। निजी स्थलों पर भिक्षावृत्ति की लिखित और मौखिक शिकायत पर अधिनियम की धाराओं के तहत कार्रवाई की जाएगी। कानून तो लागू हो गया, लेकिन प्रदेश में भिक्षावृत्ति पर रोक नहीं लग पाई। आज भी हर चौराहे, बस स्टेशन और धार्मिक स्थलों के पास इनका जमावड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।
बीते वर्ष जहरीली शराब से 60 से अधिक लोगों की मौत के बाद सरकार हरकत में आई। मौत के कारणों की जांच और जहरीली शराब पर रोक लगाने को आयोग का गठन किया। आयोग ने सरकार को रिपोर्ट उपलब्ध करा दी। अफसोस यह कि अब एक वर्ष से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन इसकी मात्र दो ही संस्तुतियों को लागू करने की दिशा में काम चल रहा है। दरअसल, आयोग ने कहा कि परिवारों की बर्बादी का कारण बनने वाली अवैध शराब पर जीरो टॉलरेंस की नीति अपनाई जाए। कच्ची शराब बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले मिथाइल एल्कोहल पर जहर अधिनियम के तहत नियंत्रण रखा जाए। नीति बनाने में आबकारी आयुक्त का दखल न हो। आयुक्त का कार्यकाल दो साल रखा जाए। इन बिंदुओं को दरकिनार करते हुए विभाग ने केवल अभी वाहनों की जीपीएस निगरानी और बोतलों पर विशेष बारकोड को लेकर ही कदम आगे बढ़ाए हैं।


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