जल संस्थान में अलग होंगे सिविल, इलेक्ट्रिकल संवर्ग
देहरादून(आरएनएस)। जल संस्थान में सिविल और इलेक्ट्रिकल का अलग अलग संवर्ग तैयार होगा। सहायक अभियंता से लेकर आगे उच्च पदों पर अलग अलग व्यवस्था होगी। सचिव पेयजल शैलेश बगोली ने अफसरों को इस तरह की व्यवस्था बनाने के निर्देश दिए। ताकि भविष्य में दोबारा चमोली एसटीपी जैसे हादसे न हों। सचिव पेयजल कार्यालय में हुई बैठक ने पूरी व्यवस्था की जानकारी ली। बताया गया कि जल संस्थान में एई संवर्ग में सिविल और इलेक्ट्रिकल का ढांचा लोकसेवा आयोग को अलग अलग जाता है। आयोग परीक्षा भी अलग अलग कराता है। इसके बाद शासन स्तर पर सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों की एक संयुक्त मेरिट लिस्ट तैयार कर नियुक्ति दी जाती है। इस पर हैरानी भी जताई गई। लेकिन नियमावली में अलग अलग वरिष्ठता का प्रावधान न होने के कारण संयुक्त वरिष्ठता जारी की जा रही है। धरातल पर काम भी अलग अलग नहीं लिया जा रहा है। सिविल वाले इंजीनियर इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रिकल वाले सिविल का काम देख रहे हैं।
इस व्यवस्था पर सचिव पेयजल ने आपत्ति जताई। कहा कि आने वाले समय में जल संस्थान को बड़े सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट का संचालन करना है। इसके साथ ही बड़ी पम्पिंग पेयजल योजनाओं का जिम्मा संभालना है। ऐसे में यदि अभी से सही तरीके से इंजीनियरों के बीच कार्य का विभाजन न किया गया, तो दिक्कतें आएंगी। इसीलिए समय रहते सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों के बीच कार्य का स्पष्ट विभाजन किया जाए। इसी अनुरूप जरूरी बदलाव किए जाएं। बैठक में अपर सचिव कमेंद्र सिंह, सीजीएम नीलिमा गर्ग, जीएम डीके सिंह, सचिव अप्रेजल मनीष सेमवाल आदि मौजूद रहे।
एजेंडे से हट कर प्रमोशन, ढांचे में उलझे रहे अफसर
सचिव स्तर पर हुई बैठक में अफसर सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरों के बीच कार्य विभाजन की बजाय प्रमोशन, ढांचे में ही उलझे रहे। जल संस्थान में मौजूदा समय में अधीक्षण अभियंता के सभी 12 पद खाली हैं। महाप्रबंधक स्तर पर भी एक को छोड़ कर बाकि सभी पद खाली हैं। विभाग में स्थिति ये है कि अधिशासी अभियंता से ऊपर स्तर के सिर्फ दो ही अफसर हैं। एक के पास सीजीएम और दूसरे के पास जीएम का चार्ज है। वरिष्ठता की स्थिति को लेकर मचे घमासान और इंजीनियरों के पदोन्नत पद के लिए पात्रता का तय समय पूरा न किए जाने से प्रमोशन नहीं हो पा रहे हैं। मैनेजमेंट ने इन तमाम तर्कों को रखते हुए इस समस्या के समाधान को विभागीय ढांचा बढ़ाए जाने की मांग की। जिस पर कोई निर्णय नहीं हो पाया।