धार्मिक संस्थाओं को खुर्द-बुर्द करने वालों के खिलाफ संतों ने खोला मोर्चा

ऋषिकेश। तीर्थनगरी ऋषिकेश के मठ, मंदिर और धर्मशालाओं को खुर्द-बुर्द करने वालों के खिलाफ संतों ने मोर्चा खोल दिया है। संत समिति ऋषिकेश ने धार्मिक संपत्तियों की खरीद और बिक्री करने वालों पर रासुका और गुंडा ऐक्ट लगाने की मांग की। समिति ने कार्रवाई न होने पर कोर्ट में याचिका दायर करने का निर्णय भी लिया है। शनिवार को रेलवे रोड स्थित महानंद आश्रम में संत समिति ऋषिकेश की बैठक आयोजित हुई। समिति अध्यक्ष महंत विनय सारस्वत ने कहा कि तीर्थनगरी ऋषिकेश का धार्मिक स्वरूप लगातार बिगड़ता जा रहा है। यहां मौजूद सैकड़ों धर्मशालाओं, मठ और मंदिरों से तीर्थनगरी की पहचान पूरे विश्व में धार्मिक क्षेत्र के रूप में जानी जाती थी। वर्ष 1950 में क्षेत्र में 750 धार्मिक संस्थाएं थी। मगर, दुर्भाग्य का विषय है कि लगातार कुछ भू-माफिया धार्मिक संपत्तियों को खुर्द-बुर्द कर उन्हें व्यावसायिक स्वरूप में तब्दील कर रहे हैं। ऋषिकेश चारधाम यात्रा का प्रमुख स्थल और प्रवेश द्वार है, यहां पूरे वर्ष लाखों की संख्या में तीर्थयात्री पहुंचते हैं। मगर मंदिर, मठ और धर्मशालाओं के अभाव में तीर्थयात्रियों को अन्न क्षेत्र और धर्मशालाएं उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं। बैठक में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास किया गया कि जो भी धार्मिक संस्थाएं और ट्रस्ट धार्मिक संपत्तियों का व्यावसायीकरण कर रहे हैं, समिति उन सबका विरोध करती है। सभी मामलों में संपत्ति बेचने व खरीदने वालों के खिलाफ रासुका व गुंडा ऐक्ट के तहत कार्रवाई की मांग की गई। मामले को लेकर समिति का प्रतिनिधिमंडल सीएम और राज्यपाल से मुलाकात करेगा। साथ ही यह मांग की जाएगी कि ऐसी संपत्तियों को सरकारी नियंत्रण में लिया जाए। कार्रवाई न होने पर संत समिति उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करेगी। इस दौरान संतों ने प्राचीन सिद्ध सोमेश्वर महादेव मंदिर में शिवरात्रि के उपरांत निकलने वाली भव्य शोभायात्रा में सहयोग करने का आश्वासन दिया। मौके पर समिति महामंत्री महंत रामेश्वर गिरी महाराज, महंत पूर्णानंद, महंत कृष्णानंद महाराज, महंत राजेंद्र गिरी, महंत हरिनारायणाचार्य, महंत केवल्यानंद महाराज, महंत नित्यानंद गिरी, महंत निर्मल दास, महंत कृष्णकांत, स्वामी धर्मवीर दादूपंथी, महंत धर्मदास, महंत नित्यानंद पुरी, महंत बलवीर सिंह, महंत इंदर गिरी, महंत हृयग्रीवाचार्य, महंत सुंदरानन्द, महंत हरिदास महाराज, महंत धर्मानंद गिरी, महंत कृष्णकांत, कोतवाल ध्यानदास, कोतवाल गोपाल आदि उपस्थित रहे।