देविका लघु वाटिका में कुमाऊंनी पुस्तकालय स्थापित

बागेश्वर। राष्ट्रीय कुमाउनी भाषा सम्मेलन के दूसरे दिन देविका लघु वाटिका मंडलसेरा में कुमाऊंनी पुस्तकालय का शुभारंभ हुआ। साहित्यकारों ने कहा कि यह पुस्तकालय युवा पीढ़ी के लिए मील का पत्थर साबित होगी। विभिन्न विषयों पर शोध करने वाले छात्रों को बागेश्वर में ही मदद मिल जाएगी। आदिकाल से लेकर आधुनिक भारत के कुमाऊं का साहित्य यहां मिलेगा। इसके बाद पौधरोपण हुआ। रविवार की सुबह नौ बजे सभी साहित्यकार वृक्ष पुरष किशन सिंह मलड़ा द्वारा तैयार देविका लघु वाटिका में पहुंचे। यहां उन्होंने पुस्तकालय स्थापित की। इसके बाद सभी ने एक-एक पौधा रोपा। साथ ही इसके संरक्षण के लिए संकल्प लिया। इसके बाद नरेंद्र पैलेस में गोष्ठी आयोजित हुई। इसमें कुमाउनी भाषा के गद्य, नाटक पर विस्तार से चर्चा हुई। वक्ताओं ने स्कूली शिक्षा में हमारी भाषा और नई शिक्षा नीति में स्थानीय भाषा पर चर्चा की। इसके अलावा आधुनिक मीडिया और कुमाउनी भाषा पर चर्चा हुई। वक्ताओं ने चिंता जताई कि सरकार नई शिक्षा नीति की बात तो करती है, लेकिन भाषा को लेकर सरकार आज भी चिंतित नहीं है। जिलों में आदर्श अटल विद्यालय खोले जा रहे हैं। इसमें अंग्रेजी भाषा को आगे बढ़ाने का काम किया जाएगा। पृथक उत्तराखंड बनने के बाद भी किसी ने कुमाउनी भाषा के लिए काम नहीं किया। जो चिंता का विषय है। आदिकाल से लेकर आज तक कुमाउनी भी काफी लिखा गया है। लोगों ने संस्मरण से लेकर यात्रा वृतांत तक कुमाऊं भाषा में लिखा है। अल्मोड़ा कैंपस में कुमाउनी भाषा पढ़ाई जा रही है, लेकिन रोजगारपरक विषय बनाने की आज जरूरत है। इसके अलावा बागेश्वर का प्रसिद्ध खेत सास-ब्वारि खेत पर बेहतरीन कुमाउनी नाटक का मंचन किया गया। यह खेत बागेश्वर की पहचना है। इस दौरान भाषा के क्षेत्र के काम कर रहे देवेंद्र कड़ाकोटी, जगदीश जोशी, हेमंत बिष्ट तथा आदि लोगों को सम्मानित किया गया। वक्ताओं ने कहा कि जब उम्र में ऊर्दू के शिक्षक भरे जा रहे हैं तो यहां कुमाउनी भाषा के शिक्षक भी तैयार किए जा सकते हैं।

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