यह तो हद हो गई! कोरोना योद्धा कर्ज में डूबे, छह महीने से तनख्वाह को तरसे

देहरादून। कोरोना संक्रमण के दौरान अपनी जान की परवाह किए बिना लोगों की सेवा करने वाले कोरोना योद्धा कर्ज में डूबे हुए हैं। पिछले कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिलने की वजह से योद्धाओं की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं है। हजारों लोगों को कोरोना संक्रमण से उबारने, बचाने और जागरूक करने वाले कोरोना योद्धा खुद बदहाली में जी रहे हैं।
सरकारी सुस्ती और अनदेखी का आलम यह है कि कोरोनाकाल में जिन कोरोना योद्धाओं ने दिन-रात नहीं देखा, उन्हें छह महीने से तनख्वाह तक के लिये तरसा दिया गया है। कोरोना योद्धा कर्ज में डूब गये हैं, मकान का किराया, राशन का खर्चा तक कर्ज लेकर देना पड़ रहा है। कोरोना संक्रमण के दौरान जब लोग अपने परिजनों तक से दूरी बनाने लगे थे, तब नैनीताल जिले में 50 से ज्यादा कोरोना योद्धा व्यवस्थाएं बनाने, मरीजों की देखभाल तक का काम करने में डटे थे।
ठेके पर रखे गये इन कर्मचारियों के जिम्मे कोरोना मरीजों की सैंपलिंग, कांटेक्ट ट्रेसिंग, आइसोलेशन, कोविड सेंटर की जिम्मेदारी, ब्लड टेस्ट जैसे काम सौंपे गये थे। अपनी और अपने परिजनों की सेहत की परवाह किये बिना ये कर्मचारी महीनों तक लगातार 24-24 घंटे काम करते रहे। लेकिन, संक्रमण कम होते ही जैसे इन लोगों को भुला दिया गया। हालात यह है कि पिछले छह माह से इन कर्मचारियों को निर्धारित वेतन तक नहीं दिया गया है।
हालांकि, ये कर्मचारी आज भी सिर्फ इस आस में काम कर रहे हैं कि शायद एक दिन उनका वेतन जारी हो जायेगा। घर का किराया, राशन, बच्चों की फीस जैसे खर्चों के लिये वे लगातार कर्ज में डूब रहे हैं। हैरत की बात यह है कि वेतन मांगने पर इन्हें नौकरी से ही निकालने का आदेश दे दिया गया है। कर्मचारियों का कहना है कि कोरोना ड्यूटी करने पर उन्हें प्रमाण पत्र और इन्सेंटिव देने का वादा किया गया था। वादा पूरा करना तो दूर उन्हें पिछले छह माह से सैलरी तक नहीं दी गई है। लेकिन अब तीसरी लहर की लगातार बढ़ती आशंकाओं के बीच उन्हें डर सताने लगा है। बिना वेतन बढ़ते काम के दबाव और कर्ज के साथ वे कैसे काम करेंगे यह चिंता उन्हें खाये जा रही है। उस पर डर यह भी है कि अगर वेतन की मांग की और नौकरी से निकाल दिया गया तो वे कोरेाना के बीच कैसे अपने परिवार का गुजारा करेंगे।

न इंश्योरेंस, न इलाज की कोई सुविधा
कर्मचारियों ने बताया कि उन्हें न तो बीमा योजना का लाभ मिलता है, न ही उनके लिये इलाज की कोई ठोस व्यवस्था है। हालत यह है कि अस्पतालों, कांटेक्ट ट्रेसिंग के काम के बाद वे सीधे अपने घर लौटते हैं। इससे उनके परिजनों पर भी खतरा बना रहता है। कभी आशंका लगती है तो वे खुद ही एक-दूसरे की जांच कर लेते हैं।

एनएचएम भर्ती में प्राथमिकता दी जाये
इन कर्मचारियों की मांग है कि राज्य में जारी एनएचएम भर्ती में उन्हें प्राथमिकता दी जाये। उनका कहना है कि वे जान जोखिम में डाल कर कोरोना शुरू होने के बाद से ही ठेके पर ड्यूटी कर रहे हैं। अब जब एनएचएम की भर्ती हो रही है तो अन्य जगह से स्वास्थ्य कर्मचारियों को रखा जा रहा है जिससे सभी में रोष है।


इन स्वास्थ्य कर्मियों के वेतन की व्यवस्था विशेष मद से की जाती है। उनके वेतन का मसला शासन स्तर पर रखा गया है। कर्मचारियों को जल्द से जल्द वेतन दिलाने के पूरे प्रयास किए जा रहे हैं।
डॉ. तृप्ति बहुगुणा, स्वास्थ्य महानिदेशक, स्वास्थ्य विभाग उत्तराखंड