बेटियों के जन्म के मामले में मैदानी जिले आगे-पहाड़ पीछे
देहरादून। उत्तराखंड में बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा बेटी बचाओ के स्लोगन को जमीनी तौर पर मजूबती देता नहीं दिख रहा है। भले ही बेटियों को पढ़ाने के मामले में प्रदेश आगे बढ़ रहा है, लेकिन बेटियों के जन्म के मामले में प्रदेश के कई जिलों की स्थिति बेहतर नहीं है। लिंगानुपात के आंकड़ों पर गौर करें तो हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्मेशन सिस्टम के मुताबिक, उत्तराखंड में देहरादून को छोड़ कोई भी बेहतर स्थिति में नहीं है। मैदानी इलाकों में ऊधमसिंह नगर जिले और पहाड़ों में पिथौरागढ़ जिले की स्थिति ही कुछ बेहतर दिख रही है।
यहां वित्तीय वर्ष 2020-2021 के आंकड़ों के मुताबिक, लिंगानुपात 948 है। हालांकि, यूनिवर्सल रेट के मानकों को देखें तो लिंगानुपात प्रति 1000 मेल पर 954 फीमेल होना चाहिए। हेल्थ मैनेजमेंट इन्फॉर्रेशन सिस्टम यानी एचएमआईएस के वित्तीय वर्ष 2020-2021 के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में सबसे बुरी स्थिति में गढ़वाल मंडल का रुद्रप्रयाग जिला है। यहां लिंगानुपात 871 है। यह चिंता जनक है।
चंपावत और गढ़वाल के पौड़ी की स्थिति चिंताजनक
कुमाऊं में चंपावत जिला 888 और गढ़वाल में पौड़ी में 885 के लिंगानुपात के साथ चिंताजनक स्थिति में है। मैदानी क्षेत्रों की अपेक्षा में पहाड़ी जिलों में स्थिति ज्यादा ख्रराब नजर आ रही है। मैदानी जिलों में देहरादून में 968, हरिद्वार में 947 और ऊधमसिंह नगर जिले में लिंगानुपात 948 है। वहीं पर्वतीय जिलों की बात करें तो उत्तरकाशी में 947, अल्मोड़ा में 946, बागेश्वर में 904, चमोली में 922, नैनीताल में 918, टिहरी में लिंगानुपात 945 है। इन आंकड़ों से साफ है कि प्रदेश में बेटी बचाओ की मुहिम अब भी धरातल में नहीं उतर पा रही है। तमाम प्रयासों के बाद भी देहरादून को छोड़कर बाकी सभी जिले यूनिवर्सल रेट के नीचे हैं।
नेशनल हेल्थ फैमली सर्वे (एनएचएफएस) हर पांच साल में जनस्वास्थ्य को लेकर कई तरह के आंकड़े जारी करता है। इसका आखिरी सर्वे 2015-16 में हुआ था। मई तक नए आंकड़े सामने आएंगे।
2015-16 के नेशनल हेल्थ फेमिली सर्वे के यह थे आंकड़े
अल्मोड़ा – 986
बागेश्वर – 879
चमोली – 950
चंपावत – 991
देहरादून – 832
हरिद्वार – 921
नैनीताल – 854
पौड़ी – 705
पिथौरागढ़ – 758
रुद्रप्रयाग – 879
टिहरी – 953
यूएस नगर – 948
उत्तरकाशी – 825