बाशिक महासू देवता के दर्शन कर सुख-शांति की कामना की
विकासनगर(आरएनएस)। बावर क्षेत्र के कैमाड़ा जंगल में आयोजित जखोली मेले के समापन पर मंगलवार को लोगों ने बाशिक महासू देवता के दर्शन कर परिवार की सुख-शांति की कामना की। मेले के दौरान समाज में आए बदलावों के बीच लोक संस्कृति के संरक्षण पर जोर दिया गया। कैमाड़ा के जंगल में हर साल जून की शुरुआत में जखोली मेला लगता है। इस साल के दो दिवसीय जखोली मेले का मंगलवार शाम को लोक संस्कृति की शानदार प्रस्तुति के साथ समापन हुआ। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार कालासुर राक्षस की पत्नी के नाम पर मनाए जाने वाले जखोली मेले में बाशिक महाराज की देव पालकी सालभर में एक बार श्रद्धालुओं को दर्शन देने कैमाड़ा जंगल आती है। बाशिक महासू देवता की पालकी दो दिन के प्रवास पर बीते रविवार शाम को गाजे-बाजे के साथ पहुंची। मेले में बावर, शिलगांव, फनार, लखौ, देवघार, बंगाण, बाणाधार, रवांई घाटी और हिमाचल क्षेत्र से बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचे। बुजुर्गों ने जड़ों से दूर हो रही युवा पीढ़ी को जौनसार-बावर की लोक संस्कृति के बारे में जानकारी दी। शांठीबिल के बजीर दीवान सिंह ने कहा कि जखोली मेला जनजातीय क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा है। मेले में दूरदराज से आई महिलाओं ने ढोल-दमौ की थाप पर हारुल और लोक गीतों पर जौनसारी समाज के परंपरागत तांदी नृत्य की शानदार प्रस्तुति से समां बांधा। कैमाड़ा में देर शाम तक लोगों के नाच-गाने का दौर चला। मेले में आए बड़े-बुजुर्गों, महिलाओं और युवाओं ने देवदर्शन कर जखोली का जश्न मनाया।
श्रद्धालुओं के लिए भंडारा आयोजित
बीते साल मांगी मन्नत पूरी होने पर कई लोगों ने जखोली मेले में आए सैकड़ों श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का आयोजन किया। श्रद्धालुओं ने भंडारे में प्रसाद ग्रहण किया। इसके साथ ही कई श्रद्धालुओं ने इस साल मांगी गई मन्नत पूरी होने पर अगले साल मेले में भंडारा देने का संकल्प लिया।