अंतरमंडलीय स्थानांतरण पर उच्च न्यायालय की रोक से शिक्षकों में रोष

अल्मोड़ा। उच्च न्यायालय द्वारा अंतरमंडलीय स्थानांतरण पर स्टे लगाए जाने के बाद से शिक्षकों में गहरा रोष और असंतोष व्याप्त है। शिक्षकों का कहना है कि पिछले दो वर्षों से राजकीय शिक्षक संघ अंतरमंडलीय स्थानांतरण के लिए नियमसंगत प्रक्रिया का पालन कर रहा है, लेकिन अब उच्च न्यायालय द्वारा 366 शिक्षकों के स्थानांतरण पर 26 अप्रैल 2025 तक रोक लगा दी गई है। इस निर्णय से शिक्षकों में निराशा का माहौल बन गया है। गत 12 मार्च को शिक्षा मंत्री की उपस्थिति में देहरादून में सभी अंतरमंडलीय शिक्षकों को स्थानांतरण आदेश आवंटित किए जाने थे, लेकिन इस प्रक्रिया पर न्यायालय द्वारा रोक लगाए जाने से शिक्षक संघ (कुमाऊं मंडल) ने नाराजगी व्यक्त की है। इस मामले में अतिथि शिक्षकों द्वारा बिना किसी ठोस कारण के आपत्ति जताने को शिक्षक संघ अनुचित मानता है। कुछ समय पूर्व उत्तराखंड सरकार की कैबिनेट ने प्रशिक्षित स्नातक सेवा नियमावली के बिंदु 4(1) में संशोधन कर अंतरमंडलीय स्थानांतरण का प्रावधान किया था। कैबिनेट ने एक बारगी समाधान (वन टाइम सेटलमेंट) के आधार पर इस स्थानांतरण को मंजूरी दी थी। इस निर्णय से अंतरमंडलीय शिक्षकों को अपनी वरिष्ठता त्यागकर अपने गृह मंडल में जाने का बहुप्रतीक्षित अवसर मिला था, लेकिन उच्च न्यायालय के आदेश के कारण यह प्रक्रिया बाधित हो गई है। अतिथि शिक्षकों को राज्य सरकार और शिक्षा विभाग द्वारा दिए जा रहे न्यून वेतन और सेवा शर्तों को लेकर समस्या है, तो उनका संघर्ष विभाग और शासन के खिलाफ होना चाहिए। लेकिन अतिथि शिक्षक संगठन के कुछ नेताओं ने अपने साथी शिक्षकों के हितों के विपरीत जाकर ऐसे कदम उठाए हैं, जो राजकीय शिक्षकों से उनके टकराव का कारण बन रहे हैं। यह केवल सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की राजनीति प्रतीत होती है, जिससे राजकीय शिक्षा प्रणाली और सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को नुकसान पहुंचने की आशंका है। कुमाऊं मंडल की कार्यकारिणी ने भी निर्णय लिया है कि वह अंतरमंडलीय शिक्षकों से विचार-विमर्श कर न्यायिक राय लेगी और उच्च न्यायालय में इन्वेशन अप्लिकेशन दायर करेगी, ताकि इस स्थानांतरण प्रक्रिया को पुनः सुचारू रूप से शुरू किया जा सके।

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