अफीम की खेती रोकने के प्रयास आज तक धरातल पर नहीं उतर पाए

[smartslider3 slider='2']

देहरादून। प्रदेश के सीमांत इलाकों में होने वाली अफीम की खेती रोकने के प्रयास आज तक धरातल पर नहीं उतर पाए। इनमें से एक प्रयास ड्रोन के जरिये खेती पर नजर रखने का था। इसका प्रस्ताव शासन को भेजा गया, लेकिन मंजूरी नहीं मिली। यह स्थिति तब है जब सरकार से लेकर पुलिस व प्रशासन को इसकी पूरी जानकारी है। यहां तक कि पड़ोसी राज्य हिमाचल भी इन पर नजर रखने को संयुक्त कार्ययोजना बनाने का प्रस्ताव भेज चुका है लेकिन इसे भी नजरंदाज कर दिया गया। नशीली वनस्पति पर रोक लगाने में राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव साफ नजर आ रहा है। दरअसल, उत्तराखंड के कई जिलों में अफीम, डोडा, पोश्त व खसखस की खेती हो रही है। चकराता, उत्तरकाशी व टिहरी के सीमांत इलाके इसकी खेती के लिए मुफीद हैं। सीमांत व विषम परिस्थितियों वाला पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण पुलिस व नारकोटिक्स की टीम यहां तक नहीं पहुंच पाती।
प्रदेश सरकार ने जेल में बंद कैदियों की स्थिति में सुधार के लिए एक समिति गठित की। समिति ने जेलों में बंद कैदियों के रहन सहन, उनकी स्वास्थ्य व अन्य सुविधाओं के संबंध में रिपोर्ट तैयार करनी थी। दो साल से समिति की रिपोर्ट तैयार नहीं हो पाई है। स्थिति यह है कि इन दो वर्ष के अंतराल में तीन महानिरीक्षक कारागार के तबादले हो चुके हैं। ऐसे में इस रिपोर्ट को लेकर इंतजार बढ़ता ही जा रहा है। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने दो वर्ष पूर्व जेल में कैदियों की दिक्कतों को देखते हुए सभी प्रदेश सरकारों को जेलों से संबंधित वर्षों पुराने कानून बदलने को कहा था। इसके लिए शासन ने अपर सचिव गृह की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय समिति गठित की। समिति को जेल के पुराने कानूनों का अध्ययन कर इन्हें बदलने का प्रस्ताव भेजने को कहा गया था, मगर आज तक यह रिपोर्ट नहीं बन पाई है।

शेयर करें
Please Share this page as it is