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16 जुलाई को है हरेला पर्व, जानें हरेला पर्व के बारे में

RNS INDIA NEWS 06/07/2021
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उत्तराखण्ड में कुमाऊँ क्षेत्र में हरेले के त्यार (त्यौहार) का बड़ा महत्व है परन्तु आपको यह जानकर हैरानी होगी की उत्तराखण्ड राज्य के अलावा और राज्य भी हैं , जहा हरेला मनाया जाता है। ऐसे ही त्यौहार हर राज्य की संस्कृति को उजागर करते हैं। हरेले का त्यौहार भी ऐसे ही हमारी (उत्तराखण्ड) की संस्कृति और परम्परा को समेटे हुए यह बताता है कि उत्तराखण्ड के पूर्वजों ने अपने वंशजों को आशीर्वाद रूपी यह हरयाली का त्यौहार दिया है। उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक पर्व को बचाए रखना हम सब का दायित्व है। यह पर्व उत्तराखण्ड के कुमाऊं मंडल में मुख्य रूप से श्रावण व चैत्र के प्रथम दिन मनाया जाता है। इस वर्ष 16 जुलाई को सावन के प्रथम दिन है और उस दिन हरेला पर्व मनाया जाएगा।

हरेला कहाँ कहाँ मनाते हैं
उत्तराखण्ड के कुमाऊँ मण्डल के अलावा गढ़वाल के कुछ क्षेत्र में तो मनाया ही जाता है, साथ ही हरेले का त्यौहार हिमाचल प्रदेश के अलग-अलग क्षेत्रों में अलग नामों से मनाते हैं, सीमला और सिरमौर में रियाली और हरियाली नाम से और जबल और किन्नौर में दखरन नाम से मनाया जाता है ।

हरेला कब मनाते हैं
हरेले का त्यौहार हरियाली और बड़ों के आशीर्वाद का प्रतीक है। हरेला हिन्दू तिथि के अनुसार श्रावण व चैत्र के प्रथम पैठ (दिन) को मनाया जाता है और मनाने से 9 या 10 दिन पहले मन्दिर के स्थान पर एक टोकरी में बोया जाता है, रोज सुबह पूजा के समय उनमें पानी के छिड़का जाता है।

हरेला बुआई के लिए उपयुक्त मिट्टी
हरेला बोने के लिए स्वच्छ स्थान की उपजाऊ मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है, देखने में आता है भूमि के अंदर चूहे जब बिल खोदते है और जमीन के अन्दर की स्वच्छ दानेदार उपजाऊ मिट्टी को बाहर निकाल देते है, यही मिट्टी हरेले बोने के लिए उपयुक्त मानी गई है।

हरेला बोने के लिए उपयुक्त बीज
हरेला बोने के लिए उपजाऊ 4-5 प्रकार के बीज बोए जाते है, जिसमें मुख्यत: मक्का, तिल, जौ, उड़द, गहत, व सरसों आदि के उपजाऊ बीज बोए जाते हैं।

हरेला क्यों मनाया जाता है
हरेला सुख और समृद्धि का प्रतीक है। हरेला इस उद्देश्य से घरों में मन्दिरों में अपने ईष्ट भगवान के सामने इस मनोकामना से बोया जाता है कि इस साल फसल अच्छी हो और प्राकृतिक आपदाओं से कोई नुकसान ना हो तथा भगवान फसल को सुरक्षित रखे। इस त्यौहार में प्राचीन काल में हमारे पूर्वज फसल बोने के साथ अपने वंशजों में कार्य करने के लिए जोश दिलाने के लिए कुमाउँनी भाषा में ये आशीर्वादी शब्द बोले जाते थे, जो हरेले के दिन पूजा पाठ के बाद हरेला काटकर घर की बड़ी बुजुर्ग महिलाएं आसन पे बिठा के, दो हाथों से हरेले की पत्तियां परिजनों के घुटने, कंधे और फिर सिर पर रखते हैं। हरेला चढ़ाते समय इन शब्दों से आशीर्वाद देती हैं ..

जी रया, जागी रया
यो दिन बार, भेटने रया
दुबक जस जड़ हैजो
पात जस पोल हैजो
स्यालक जस त्राण हैजो
हिमालय में ह्यू छन तक
गंगा में पाणी छन तक
हरेला त्यार मानते रया
जी रया, जागी रया।

इसका हिन्दी अर्थ है कि तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार आता-जाता रहे, वंश-परिवार दूब की तरह पनपता रहे, धरती जैसा विस्तार मिले आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो, शेर जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले, हिमालय में हिम रहने और गंगा में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो।
इसके बाद घरों में पकवान बनाए जाते है जैसे पूरी, उड़द की पकोड़ी (बड़), खीर, हलवा आदि और त्यौहार की बधाई देते हुए आस पड़ोस में पकवान बांटे जाते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार गाय के लिए गोग्रास रखा जाता है और गौ पूजा की जाती है।


(रिपोर्ट मनीष नेगी, मोहित भंडारी द्वाराहाट)

https://uttarakhand.tech/harela/

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