कोरोना ने तोड़ी पर्यटन नगरी लैंसडौन की आर्थिकी
कोटद्वार। कोरोना ने इस बार भी पर्यटन नगरी लैंसडौन की आर्थिकी तोडक़र रख दी है। क्षेत्र में पर्यटन व्यवस्था में जून माह तक 25करोड़ से अधिक का नुकसान पहुंचने की उम्मीद है। बताना जरूरी है कि बीते वर्ष कोरोना महामारी के चलते क्षेत्र में पर्यटन व्यवसाय धरातल पर आ गया था। व्यवसायी अभी संभल ही रहा था कि एक बार फिर कोरोना की मार व्यवसायियों पर पड़ गई। लैंसडौन के पर्यटन व्यवसाय की हालत यह है कि नई बुकिग मिलना तो दूर पर्यटकों ने अपनी पुरानी बुकिग भी कैंसल कर दी हैं। वर्तमान में नगर क्षेत्र से लगे किसी भी होटल में एक-एक कमरा किराए पर चढऩा भारी पड़ा हुआ है। लैंसडौन में अप्रैल से जून तक पर्यटन सीजन अपने चरम पर होता है। बीते वर्ष मार्च में कोरोना के चलते लगे लॉकडाउन के कारण पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो गया था। अक्टूबर, नवंबर तक कोरोना की लहर धीमी पड़ी तो व्यवसायियों को पर्यटन विकास की उम्मीद जगने लगी। इस वर्ष फरवरी माह में लैंसडौन समेत निकटवर्ती क्षेत्रों में बड़ी संख्या में पर्यटकों ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। इससे घाटे में चल रहे पर्यटन व्यवसाय को उम्मीदों के पंख लगने लगे। लेकिन, एक बार फिर से कोरोना के दूसरे चरण में बढ़ते हुए मामले देखकर पर्यटकों के कदम यहां आने से ठिठक गए है, जिसका सीधा असर पर्यटन व्यवसाय पर पड़ा है।
यह हैं मौजूदा नियम: बाहरी क्षेत्रों से आने वाले पर्यटकों को उत्तराखंड के वेब पोर्टल पर अनिवार्य रूप से अपना पंजीकरण करने के साथ ही कोविड की निगेटिव रिपोर्ट लानी होगी। यदि किसी होटल में पर्यटक इन नियमों का उल्लंघन करता हुआ पकड़ा गया, तो संबंधित होटल व्यवसायी को भी बराबर का दोषी माना जाएगा।
ब्याज की मार ने उड़ाई नींद: लैंसडौन समेत निकटवर्ती क्षेत्रों में पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में नए होम स्टे व बड़े होटल खुले हैं। इनके निर्माण के लिए होटल व्यवसायियों ने करोड़ों रुपये का ऋण लिया हुआ है। लगातार दो साल से पर्यटन व होटल व्यवसाय चौपट होने से होटल व्यवसायियों को बैंक का ब्याज देना भी मुश्किल हो गया है। सरकार की ओर से बीते वर्ष कोरोना काल में जारी किया गया बजट भी होटल व्यवसायियों के घावों पर मरहम नही लगा पाया। ऐसे में ऋण पर पड़ रही ब्याज की मार ने सभी की नींद हराम की हुई है। ऐसे में होटल स्टाफ, बिजली, पानी के बिलों का भुगतान भी भारी पड़ रहा है।
लैंसडौन में गढ़वाल मंडल विकास निगम के दो आवास गृह हैं। दोनों की पूर्व में करवाई गई सभी बुकिग निरस्त हो चुकी हैं। दो वर्ष पूर्व तक गर्मियों में पर्यटकों को बामुश्किल कमरे मिल पाते थे। लेकिन, आज सभी कमरे खाली पड़े हुए हैं। -अनूप अण्थवाल, प्रबंधक, गढ़वाल मंडल विकास निगम, लैंसडौन