
विकासनगर(आरएनएस)। अगले माह पहली बार उत्तराखंड से हिमाचल के पश्मी गांव में प्रवास के लिए जा रहे चालदा महासू महाराज के स्वागत को लेकर हिमाचल के पश्मी गांव में तैयारियां जोरों से चल रही हैं, लेकिन इससे एक माह पहले ही दसऊ गांव में विराजमान महाराज का बकरा पश्मी, सिरमौर में पहुंच गया है। इस बकरे को स्थानीय भाषा में घांडुवा कहते हैं। इसे चालदा महाराज का देव चिह्न माना गया है। जौनसार बावर, हिमाचल, रवाईं, जौनपुर, उत्तरकाशी क्षेत्र की आस्था और देव परंपराओं के प्रतीक माने जाने वाले चालदा महाराज के देव चिह्न के रूप में प्रसिद्ध घांडुवा (बकरा) परंपरा निभाते हुए समय से पहले सिरमौर जिले के पश्मी गांव पहुंच गया है। चालदा महाराज का प्रवास अगले महीने जौनसार से हिमाचल के पश्मी गांव के लिए निर्धारित है। स्थानीय लोगों की माने तो महाराज के आगमन से पहले यह बकरा कुछ सप्ताह पूर्व ही निर्धारित स्थल पर पहुंच जाता है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह केवल एक बकरा नहीं, बल्कि देवता की इच्छा और संकेत का प्रतीक है। जिस स्थान पर महाराज की अगली देव यात्रा होती है। वहां यह बकरा स्वतः पहुंच जाता है। हैरानी की बात यह है कि यह बकरा बिना किसी मानवीय दिशा-निर्देश या रोक-टोक के अपनी यात्रा पूरी करता है और हर बार सही स्थान पर पहुंच जाता है। दसऊ गांव के ग्रामीणों ने बताया कि कुछ दिन पहले यह बकरा गांव से रवाना हुआ था और अब इसके पश्मी सिरमौर पहुंचने की पुष्टि हो चुकी है। इसको लेकर क्षेत्र में श्रद्धालुओं में उत्साह और भक्ति का माहौल नजर आ रहा है। लोग इसे ईश्वरीय चमत्कार मान रहे हैं। पश्मी गांव के लोगों ने फूलमाला पहनाकर और तिलक लगा स्वागत किया। महाराज के प्रवास तक इसे देव देखरेख में रखा जाएगा। स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि यह परंपरा सदियों से चल रही है। महाराज का प्रवास 13-14 दिसंबर को गांव में होगा। छत्रधारी चालदा महासू देवता पहली बार टौंस नदी को पार करके उत्तराखंड से हिमाचल प्रदेश पहुंचेंगे।

