वन पंचायतों को ग्राम पंचायतों के अधीन करने का वन पंचायत संगठन करेगा विरोध
अल्मोड़ा। वन पंचायतों की स्वायत्तता समाप्त कर यदि उन्हें ग्राम पंचायतों के अधीन किया गया तो वन पंचायत संगठन उसका पुरजोर विरोध करेगा। यह बात बसौली में संपन्न वन पंचायत संगठन की बैठक में कही गयी। कहा वन पंचायतों का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है। वन पंचायतें केवल उत्तराखंड में हैं, जिसे ब्रिटिश हुकूमत के साथ एक लंबे संघर्ष के बाद 1931 में हासिल किया गया था। राज्य गठन के बाद वन पंचायत नियमावली में चार बार संशोधन किया जा चुका है। 2001, 2005, 2012 तथा 2024 में किये गये इन संशोधनों ने वन पंचायतों को कमजोर कर उनमें वन विभाग का नियंत्रण काफी ज्यादा बढ़ा दिया गया। 2024 की संशोधित नियमावली अभी वन पंचायतों तक पहुंची भी नहीं कि उन्हें ग्राम पंचायतों के अधीन करने के प्रयास तेज होने लगे हैं। समाचार पत्रों में छपी इस आशय की खबरों के बाद वन पंचायत संगठन आक्रोशित हैं। उन्होंने कहा यदि ऐसा हुआ तो वन पंचायत की अवधारणा ही समाप्त हो जायेगी। वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र की विषम भौगोलिक परिस्थिति को देखते हुए अंग्रेजों ने यहां पटवारी तथा वन पंचायत व्यवस्था दी थी, जो देश में अन्यत्र नहीं थी। इन्हें कमजोर करने के प्रयासों को सहन नहीं किया जायेगा। बैठक की अध्यक्षता वन पंचायत संगठन ताकुला के अध्यक्ष सुंदर पिलख्वाल ने की। यहां वन पंचायत संगठन के संरक्षक ईश्वर जोशी, पूर्व अध्यक्ष डूंगर सिंह, सुशील कांडपाल, अशोज भोज आदि उपस्थित थे।