उत्तराखण्ड में पहली बार गुलदार को लगाया गया रेडियो कॉलर

देहरादून। उत्तराखंड में गुलदारों के आबादी में घुसने और हमला करने की खबरें रोजमर्रा की बात हैं। 70 फीसदी से ज्यादा वन क्षेत्र वाले राज्य में जंगलों से सटे इलाकों में लोग खौफ में जीते हैं। इससे निजात पाने के लिए उत्तराखंड में गुलदारों को रेडियो कॉलर किया जा रहा है ताकि उन पर हर समय नजर रखी जा सके। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर 15 गुलदारों को कॉलर किया जा रहा है। मंगलवार को हरिद्वार फॉरेस्ट डिवीजन में एक गुलदार को सफलतापूर्वक रेडियो कॉलर किया गया। इस गुलदार को सुबह साढ़े तीन बजे जंगल में छोड़ दिया गया। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इसके लिए राजाजी टाइगर रिजर्व के रायवाला क्षेत्र, हरिद्वार फॉरेस्ट डिवीजन और देहरादून फॉरेस्ट डिवीजन से लगे आबादी क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है। इन तीनों जगह से पांच-पांच गुलदार को रेडियो कॉलर करने की योजना बनाई गई है। हरिद्वार में पिछले दिनों आबादी क्षेत्र से एक गुलदार को रेस्क्यू किया गया था जो पिछले दो महीने से क्षेत्र में दहशत का पर्याय बना हुआ था। मंगलवार को भारतीय वन्य जीव संस्थान के साइंटिस्टों, उत्तराखंड के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन, हरिद्वार फॉरेस्ट डिवीजन के ऑफिसर्स की मौजूदगी में इस गुलदार को सैटेलाइट रेडियो कॉलर लगाने के बाद जंगल में रिलीज कर दिया गया।
देश में मानव-वन्यजीव संघर्ष, खासकर गुलदार के हमलों के मामलों में उत्तराखंड सबसे अग्रणी राज्यों में से एक है। यहां अन्य जंगली जानवरों के हमले में मारे जाने वाले लोगों में सबसे ज्यादा गुलदार के ही शिकार होते हैं। देहरादून, हरिद्वार और ऋषिकेश से लगे राजाजी टाइगर रिजर्व मोतीचूर रेंज का रायवाला का क्षेत्र तो इसके लिए देश में हॉट स्पॉट के रूप में जाना जाता है। हरिद्वार फॉरेस्ट डिवीजन में एक गुलदार को सफलतापूर्वक रेडियो कॉलर करने के बाद जंगल में छोड़ दिया गया। पिछले पांच सालों में रायवाला के करीब दस किलोमीटर एरिया में गुलदार 26 से अधिक लोगों को मार चुके हैं। इस क्षेत्र में करीब दो दर्जन गुलदार हैं, जिनकी मौजूदगी कैमरे ट्रैप में सामने आई है। इस क्षेत्र से भी पांच गुलदारों को कॉलर करने की योजना है।
उत्तराखंड के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन जेएस कहते हैं कि उत्तराखंड में पहली बार गुलदार को रेडियो कॉलर किया गया है। अगले 7 से आठ महीने में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लिए जाने वाले सभी 14 अन्य गुलदार को भी कॉलर कर लिया जाएगा। डब्लूआईआई के डायरेक्टर धनंजय मोहन का कहना है कि गुलदारों को रेडियो कॉलर किए जाने से मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने में मदद मिलेगी। रेडियो कॉलर लगने से रेजिडेंशियल एरिया में आने के आदी हो चुके इन गुलदारों की पल-पल की लोकेशन मिलती रहेगी। इससे गुलदार के आने-जाने का रास्ता मालूम हो सकेगा और यह जानकारी भी मिल पाएगी कि गुलदार किस समय जंगल छोड़ रेजिडेंशियल एरिया की ओर मूव करते हैं? क्या गुलदारों के व्यवहार में कोई चेंज आ रहा है।