जादुई उपचार के दावे रोकने वाला नियम ही हटा दिया? पतंजलि केस में केंद्र से बोला सुको

 नई दिल्ली (आरएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि मामले में मंगलवार को केंद्र सरकार से कुछ कठिन सवाल पूछे। बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद के भ्रामक विज्ञापनों को लेकर मैराथन सुनवाई के दौरान यह सवाल-जवाब हुआ। मालूम हो कि इन विज्ञापनों में कोरोनिल भी शामिल था, जिसे कोविड-19 के खिलाफ कारगर इलाज के रूप में प्रचारित किया गया। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह जानना चाहा कि सरकार ने ड्रग्स एंड मैजिकल रेमेडीज एक्ट से नियम 170 को क्यों हटा दिया, जो जादुई असर वाले प्रोडक्ट्स के रूप में दवाओं के विज्ञापन पर रोक लगाता है।
आयुर्वेदिक दवाइयां बेचने वाली पतंजलि सहित दूसरी कंपनियों के दावों की जांच के लिए 2018 में डीएमआर में नियम 170 जोड़ा गया था। हालांकि, पिछले साल अगस्त में आयुष मंत्रालय ने स्पेशल टेक्निकल बोर्ड के इनपुट के आधार पर यू-टर्न लिया और इसे हटाने की सिफारिश कर दी। साथ ही अधिकारियों से कहा गया कि वे अब इस नियम के तहत कार्रवाई न करें। नियम 170 के तहत आयुर्वेदिक, सिद्ध और यूनानी औषधियां बनाने वाली कंपनियों को विज्ञापन देने से पहले स्टेट लाइसेंसिंग अथॉरिटी से मंजूरी लेनी जरूरी थी। इसे लेकर नाराज सुप्रीम कोर्ट ने यह जानना चाहा कि केंद्र क्यों पीछे हट गया? अदालने कहा, ‘ऐसा लगता है कि अधिकारी कमाई देखने में ही व्यस्त थे।’

‘आपने संसद में कहा कि ऐक्शन लिया है मगर…’
एससी ने केंद्र ने पूछा, ‘आयुष मंत्रालय ने नियम 170 को लेकर सभी राज्यों को पत्र जारी किया और अब आप इसे वापस लेना चाहते हैं? राज्य मंत्री ने तो संसद में कहा कि ऐसे विज्ञापनों के खिलाफ कदम उठाए गए हैं। अब आप कहते हैं कि नियम 170 प्रभाव में नहीं होगा?’ अदालत ने सवाल किया कि जब कोई कानून लागू हो तो क्या आप उस पर रोक लगा सकते हैं? क्या यह सत्ता का रंगबिरंगा इस्तेमाल और कानून का उल्लंघन नहीं है? जस्टिस ने कहा कि आपको यह बताना होगा कि एडवरटाइजिंग काउंसिल ने ऐसे विज्ञापनों के खिलाफ क्या किया। आपके सदस्य दवाइयां लिख रहे हैं। जिस तरह का कवरेज हमने देखा है। हम बच्चों, शिशुओं, महिलाओं को देख रहे हैं और किसी को धोखा नहीं दिया जा सकता।

मामले में 30 अप्रैल को अगली सुनवाई की तारीख तय
पीठ ने मामले में आगे की सुनवाई के लिए 30 अप्रैल की तारीख तय की है। मालूम हो कि न्यायालय ने रामदेव और बालकृष्ण को 16 अप्रैल को हिदायत दी थी कि वे एलोपैथी को नीचा दिखाने का कोई प्रयास नहीं करें। कोर्ट ने उन्हें पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के भ्रामक विज्ञापन के मामले में एक सप्ताह के भीतर सार्वजनिक रूप से माफी मांगने और पछतावा प्रकट करने की अनुमति दी थी। शीर्ष अदालत ने यह भी स्पष्ट किया था कि वह अभी उन्हें इस चरण में राहत नहीं देगी। ध्यान रहें कि सुप्रीम कोर्ट 2022 में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें कोविड टीकाकरण और आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों के खिलाफ दुष्प्रचार अभियान चलाने का आरोप लगाया गया है।