हाईकोर्ट ने की वन गुर्जरों को वनों से हटाने पर 7 जिलों के डीएम से रिपोर्ट तलब

नैनीताल। हाईकोर्ट नैनीताल ने बुधवार को प्रदेश के वन क्षेत्रों में रहने वाले वन गुर्जरों को वनों से हटाए जाने के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार के शपथ पत्र पर नाराजगी व्यक्त की। कोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ, जिलाधिकारी नैनीताल, यूएस नगर, हरिद्वार, देहरादून, पौड़ी, टिहरी और उत्तरकाशी को व्यक्तिगत रूप से 24 नवंबर को कोर्ट में विस्तृत रिपोर्ट के साथ पेश होने को कहा है।
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएस चौहान एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ में हुई। थिंक एक्ट राइज फाउंडेशन के सदस्य अर्जुन कसाना और हिमालयन युवा ग्रामीण, रामनगर की ओर से इस मामले में जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें कहा गया है कि उत्तरकाशी जिले में लगभग 150 वन गुर्जर और उनके मवेशियों को गोविंद पशु विहार राष्ट्रीय पार्क में प्रवेश नहीं करने दिया जा रहा है। ऐसे में वह खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर हैं।
मवेशी भूख से मर रहे हैं। कोर्ट ने पूर्व में इसे मौलिक अधिकारों का हनन बताते हुए उत्तरकाशी के डीएम और उद्यान उप निदेशक को निर्देशित किया था कि सभी वन गुर्जरों के लिए आवास, खाने-पीने के साथ ही दवाई की व्यवस्था करें। उनके मवेशियों के लिए भी चारे की व्यवस्था की जाए। इसकी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए गए।
याचिकाकर्ता का कहना है, कि उत्तराखंड के जंगलों में लगभग 10 हजार से अधिक वन गुर्जर पिछले 150 साल से निवास कर रहे हैं। अब सरकार उन्हें वनों से हटा रही है। इससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो रहा है। उन्हें वनों से विस्थापित नहीं किया जाए। बुधवार को कोर्ट ने प्रमुख सचिव समाज कल्याण, पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ और सात जिलों के डीएम को 24 नवंबर को कोर्ट में विस्तृत रिपोर्ट के साथ पेश होने के निर्देश दिए।

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