नौकरी के अंतिम पड़ाव पर नहीं बदल सकते सरकारी कर्मचारी जन्मतिथि : सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली (आरएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकारी कर्मचारी द्वारा जन्मतिथि में बदलाव की मांग करने वाली याचिका को अधिकार का मामला नहीं बनाया जा सकता है। इस तरह के अनुरोध को किसी के करियर के अंतिम छोर पर भी अनुमति नहीं दी जा सकती है।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की पीठ ने एक कर्मचारी की जन्मतिथि में बदलाव के उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ कर्नाटक ग्रामीण बुनियादी ढांचा विकास लिमिटेड द्वारा दायर एक अपील की अनुमति दी। अपने फैसले में अदालत ने कहा कि राज्य सरकार के कर्मचारियों की उम्र का निर्धारण कर्नाटक राज्य सेवक (आयु का निर्धारण) अधिनियम, 1974 द्वारा शासित होता है। इसके मुताबिक, नौकरी शुरू करने के शुरुआती तीन साल के भीतर ही जन्म तिथि में परिवर्तन के लिए आवेदन दिया जा सकता है। या फिर अधिनियम के लागू होने के एक वर्ष के भीतर ऐसा किया जा सकता है। इस मामले में, अदालत ने निगम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गुरुदास एस कन्नूर, और अधिवक्ता चिन्मय देशपांडे और अनिरुद्ध संगनेरिया के एक प्रस्तुतीकरण पर सहमति व्यक्त की।
कोर्ट ने कहा कि कर्मचारी देरी और देरी के आधार पर किसी भी राहत या जन्म तिथि में बदलाव का हकदार नहीं है, क्योंकि जन्म तिथि में बदलाव के लिए अनुरोध उसके सेवा में शामिल होने के 24 साल बाद किया गया है। पीठ ने कहा, निगम का कर्मचारी होने के नाते, उन्हें निगम के कर्मचारियों पर लागू होने वाले नियमों और विनियमों को जानना चाहिए था। कानून की अनदेखी वैधानिक प्रावधानों से बचने का बहाना नहीं हो सकती है। इस संबंध में शीर्ष अदालत ने कहा कि जन्म तिथि बदलने के लिए आवेदन केवल प्रासंगिक प्रावधानों या लागू नियमों के अनुसार ही हो सकता है। ठोस सबूत होने के बावजूद इसके बाद दावा नहीं किया जा सकता है। इसके अलावा, इस तरह के आवेदन को देरी के आधार पर खारिज कर दिया जा सकता है और विशेष रूप से तब जब यह सेवा के अंत में किया जाता है।

error: Share this page as it is...!!!!
Exit mobile version