केंद्र से मांगी रेमडेसिविर की अतिरिक्त डोज

देहरादून। उत्तराखंड में रेमडेसिविर इंजेक्शन की भारी किल्लत के चलते राज्य सरकार ने केंद्र से 60 हजार इंजेक्शन मांगें है। वहीं, कंपनियों से इंजेक्शन के बाबत सीधी बात भी की है। दो दिन के भीतर राज्य को कुछ इंजेक्शन मिलने की उम्मीद है। राज्य में कोरोना संक्रमण बढऩे से फिर से इस इंजेक्शन की मांग बढ़ गई है। सरकारी अस्पतालों में इसका स्टाक लगभग खत्म हो गया है और बाजारों में भी सरलता से नहीं मिल पा रहा है। इस कमी के मद्देनजर राज्य सरकार ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को पत्र भेजते हुए अगले तीन माह के लिए 60 हजार इंजेक्शन मांगें हैं। प्रभारी सचिव (स्वास्थ्य) डा. पंकज कुमार पांडे ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने बताया कि तीन-चार चरणों में रेमडेसिविर इंजेक्शन मांगा गया है। केंद्र ने पहले चरण के लिए इंजेक्शन दो-तीन दिन के भीतर भेजने का भरोसा दिया है। डा. पांडेय के मुताबिक जैसे इंजेक्शन उपलब्ध होगा तो इसे प्राइवेट अस्पतालों को भी आवंटित किया जाएगा।

सिर्फ 40 इंजेक्शन बचे हैं श्रीनगर में: प्रभारी सचिव डा. पांडे ने बताया कि दून व श्रीनगर मेडिकल कालेज में अभी इंजेक्शन का स्टाक है, जबकि हल्द्वानी में खत्म हो चुका है। कल तक वहां इंजेक्शन उपलब्ध हो जाएगा। श्रीनगर मेडिकल कालेज प्राचार्य डा. चंद्र मोहन सिंह रावत ने बताया कि 40 इंजेक्शन शेष हैं और 600 की मांग की गई है। दून मेडिकल कालेज में शेष बचे 70 इंजेक्शन भी शाम को खत्म हो चुके थे।
प्राइवेट अस्पतालों में नहीं है इंजेक्शन: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के सचिव डा. अजय खन्ना ने बताया कि प्राइवेट अस्पतालों में भी इस इंजेक्शन का स्टाक नहीं बचा है। डिमांड करने के बावजूद डिस्टब्यूटर्स से उपलब्ध नहीं करा पा रहे हैं। उनका भी कहना है कि कंपनी से इंजेक्शन की सप्लाई नहीं हो रही है।

ये है कमी की वजह: कोरोना संक्रमित सभी व्यक्तियों को चिकित्सक रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाने की सलाह दे रहे हैं। इस वजह से इसके लिए मारा-मारी मची है। बाजारों में यह इंजेक्शन है नहीं या फिर लोगों को ब्लैक में खरीदने को विवश होना पड़ रहा है। उत्तराखंड में इस इंजेक्शन को सिर्फ दो ही कंपनियां आपूर्ति करती है। मांग बढऩे और आपूर्ति बिल्कुल कम होने से राज्य में इसकी भारी किल्लत बनी है।
मृत्यदर है समान: प्रभारी सचिव (स्वास्थ्य) डा. पंकज कुमार पांडे के अनुसार पिछले दिनों आए एक रिसर्च में यह बात साफ हो चुकी है कि कोरोना संक्रमित जिन व्यक्तियों ने रेमडेसिविर इंजेक्शन लगाया था उनकी और इस इंजेक्शन न लगाने वालों की मृत्युदर भी लगभग समान ही थी। हां यह बात सही है कि इंजेक्शन लगाने वालों में संक्रमण की घातकता कम हो जाती है। सिर्फ चिकित्सकों ने ही इस इंजेक्शन के लिए बाजार में माहौल बनाया है।