घनी बस्तियों में तब्दील राजस्व क्षेत्रों में बनेंगे सिविल पुलिस के थाने

देहरादून। प्रदेश के राजस्व क्षेत्रों में भी अब सिविल पुलिस का दायरा बढ़ाया जाएगा। जहां भी सरकार को लगेगा कि कानून-व्यवस्था बनाने के लिए थाने खोलने की जरूरत है वहां इनकी स्थापना की जाएगी। विशेषकर ऐसे राजस्व क्षेत्र जो अब घनी बस्तियों में तब्दील हो गए हैं वहां प्राथमिकता के आधार पर थाने खोले जाएंगे।
उत्तराखंड में कुल 13 जिलों में से नौ जिले पर्वतीय व चार जिले मैदानी हैं। इनमें तकरीबन 60 फीसद हिस्सा राजस्व पुलिस और शेष 40 फीसद सिविल पुलिस के अंतर्गत आता है। सभी पर्वतीय जिलों में अधिकांश क्षेत्र राजस्व क्षेत्र हैं। ब्रिटिश काल में यहां पटवारी पुलिस यानी राजस्व पुलिस की व्यवस्था लागू की गई थी। इस व्यवस्था के अनुसार यहां पटवारियों को पुलिस के समान अधिकार दिए गए। राजस्व क्षेत्रों में होने वाले अपराध की जांच भी राजस्व पुलिस ही करती है।
अंग्रेजों के जमाने की यह व्यवस्था प्रदेश में अब भी प्रभावी है। प्रदेश में बीते कुछ वर्षों में पर्वतीय क्षेत्रों में अपराध का ग्राफ बढ़ा है। इसका एक कारण पर्वतीय क्षेत्रों का तेजी से होता विकास भी है। दरअसल, जैसे-जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में बस्तियां घनी हो रही हैं तो यहां जनसंख्या बढ़ रही हैं। ऐसे में आपराधिक छवि के लोग भी यहां पहुंच रहे हैं। जिससे कानून-व्यवस्था प्रभावित हो रही है। गंभीर प्रवृत्ति के अपराधों में राजस्व पुलिस हथियारों व उपकरणों की कमी के कारण प्रभावी साबित नहीं हो पा रही है। नतीजतन ऐसे अपराधों की जांच सही तरीके से नहीं हो पाती।
गंभीर अपराधों के मामले सिविल पुलिस को ही सौंपे जाते हैं। इसे देखते हुए एक याचिका की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने राजस्व कर्मचारियों से पुलिस का काम न लेते हुए यहां सिविल पुलिस तैनात करने के निर्देश दिए थे। सरकार ने इस पर असमर्थता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। वहां मामला विचाराधीन है। हालांकि, सरकार ने जरूरत के हिसाब से थाने खोलने से परहेज नहीं किया है। अब पर्वतीय क्षेत्रों में सुरक्षा के मद्देनजर नए थाने का गठन करने की कवायद भी शुरू हो गई है। हाल ही में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पुलिस अधिकारियों के संग हुई बैठक में इस पर गहन मंथन हुआ। इस दौरान यह निर्णय लिया गया कि जरूरत के हिसाब से धीरे-धीरे राजस्व क्षेत्रों में सिविल पुलिस की तैनाती की जाएगी।

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