


1500 रुपये में बना रडार सिस्टम, जंगली जानवरों की गतिविधियों पर देगा अलर्ट
रुद्रप्रयाग(आरएनएस)। गढ़वाल के पहाड़ी इलाकों में जंगली जानवरों के बढ़ते हमलों से लोगों को बचाने में ऑटोमैटिक रडार सिस्टम उपयोगी साबित हो सकता है। सरस्वती विद्या मंदिर इंटरमीडिएट कॉलेज ऊखीमठ के कक्षा दसवीं के छात्र चिन्मय नौटियाल ने ऑटोमैटिक रडार सिस्टम तैयार किया है। उन्होंने यह मॉडल जिला विज्ञान महोत्सव में प्रदर्शित किया, जिसे राज्य स्तरीय प्रतियोगिता के लिए चुना गया है। चिन्मय ने तीन दिन में यह ऑटोमैटिक रडार तैयार किया है। उन्होंने अल्ट्रासोनिक सेंसर, मोटर बजर और लाल, पीली और हरी लाइट्स की मदद से इस रडार को तैयार किया है। यह रडार जंगली जानवर, गुलदार, भालू, बंदर, सूअर सहित अन्य जानवरों की चहलकदमी को चार मीटर की दूरी तक पता कर लेता है। जानवर के चार मीटर की दूरी पर रडार पर लगा बजर हरि लाइट के साथ कम ध्वनि के साथ बजने लगता है। जब, जानवर एक मीटर की दूरी पर रहेगा तो यह बजर पीली लाइटस के साथ तेज ध्वनि के साथ बजेगा। वहीं, जानवर के आधे मीटर की दूरी पर आते ही लाल प्रकाश के साथ बजर एक तेज आवाज में बजने लगेगा, जिससे जानवर असहज होकर मौके से भाग सकता है। यह रडार घरों के बाहर दीवार पर लगाई जा सकती है। छात्र चिन्मय ने बताया कि इस उपकरण की मदद से जंगली जानवरों से बचने के लिए लोगों को सतर्क किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वह अपने इस उपकरण को और आधुनिक बनाने के लिए इसे सिम मॉडयूल बना रहे हैं, जिसकी मदद से जंगली जानवर की नजदीक चहलकदमी पर रडार वेब माध्यम से एक संदेश मोबाइल पर भी भेज सकेगा। साथ ही मोबाइल पर घंटी बजने लगेगी। छात्र के इस शोध में उसके विज्ञान शिक्षक राकेश खोयाल ने अहम भूमिका निभाई है। चिन्मय के ऑटोमैटिक रडार सिस्टम को बनाने में कम से कम 1500 रुपये का खर्चा आ सकता है। सेंसर, बजर, लाइट्स, तारें, बोर्ड सहित अन्य जरूरी सामग्री से यह उपकरण तैयार किया जा रहा है। इसके बाद इस उपकरण की कोडिग की जा रही है, जो लैपटॉप के माध्यम से साफ्टवेयर के जरिए होती है।

