भूमि के मालिकाना हक के लिए जूझ रहे दो गांव के लोग
हरिद्वार(आरएनएस)। पथरी में टिहरी विस्थापित क्षेत्र के लोग मालिकाना हक तो धारिवाला के ग्रामीण भूमि पर कब्जे के लिये जूझ रहे हैं। दोनों गांव के ग्रामीणों की मांग पिछले तीस वर्षों से चली आ रही है, लेकिन इन्हें उनका हक नहीं मिल पा रहा है। टिहरी विस्थापित और धारिवाला के ग्रामीण अपनी मांग को लेकर शासन प्रशासन के दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं। पथरी स्थित गांव धारिवाला निवासियों को वर्ष 1954 में मुजफ्फरनगर में बाढ़ आने के चलते यहां बसाया गया था, जिन्हें भूमि भी आवंटित की गई थी, लेकिन आजतक नही उस पर खेती करने का अधिकार नही मिला है। उक्त भूमि पर अन्य गांववासियों का कब्जा आज तक कायम है, जिसके लिए धारिवाला के ग्रामीण कोर्ट में अपने हक के लिए लड़ते आ रहे हैं। दूसरी ओर टिहरी से हटाकर पथरी में बसाए गए लोगों को आज तक उनका हक मूलभूत सुविधाएं नही मिल पाई हैं। विस्थापितों को उनकी ही आवंटित भूमि का मालिकाना अधिकार नहीं मिल पाया है, जिसके लिए वह शासन-प्रशासन भी पिछले तीस वर्ष से मांग करते आ रहे हैं। मामले में कई बार धरना प्रदर्शन भी हो चुका है, लेकिन विस्थापितों को आश्वासन के अलावा कुछ हाथ नही लग पाया है। ब्लॉक प्रमुख आशा नेगी, बालम सिंह नेगी, बलवंत सिंह पंवार, हुकुम सिंह रावत, दीपक रावत, पूर्ण सिंह राणा, उत्तम सिंह, महावीर रावत, रत्न सिंह नेगी, उत्तम बटोला, उदय सिंह रावत, हुकुम सिंह चौहान, अंजू पंवार ने बताया कि मालिकाना हक के लिए कई बार सर्व भी हो चुके है, लेकिन अभी तक कोई प्रकिया आगे नही बढ़ पाई है। शासन-प्रशासन इसमें लीपापोती कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह उनका हक है जो उन्हें बहुत पहले ही मिल जाना चाहिए था। इसके अलावा विस्थापितों के लिए कोई अच्छा सरकारी डिग्री कॉलेज, अस्पताल भी नहीं खोला गया और न ही रोडवेज की कोई सुविधा उपलब्ध हो पाई। सरकार की ओर से विस्थापितों से किए गए वादे हवाई साबित हुए हैं। विस्थापितों ने जल्द भूमि के मालिकाना हक की मांग की है। वहीं, धारिवाला के ग्रामीणों ने उनको भूमि पर कब्जे दिलाने की मांग की है।