बंदरों को पकड़ने के कोई इंतजाम नहीं हुए सफल

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रुद्रप्रयाग। जंगली क्षेत्रों के साथ ही गांवों में फलदार वृक्षों की कमी के चलते बंदरों का रुख शहरी क्षेत्रों की ओर हो रहा है। विशेषकर ऐसे स्थान जहां बंदरों को खाने-पीने के लिए कुछ नहीं मिल रहा है तो वह शहरों में आ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि दो दशक पहले बंदरों की तादाद जैसी गांवों में दिखती थी, वैसी अब शहरों में पहुंच गई है। पर्यावरणविद जगत सिंह जंगली कहते हैं कि जब जंगलों में बंदरों के अनुकूल माहौल, खान-पान नहीं मिल रहा तो वह शहरों में आने लगे हैं। शुरूआत में ही यदि बंदरों को शहरों में आने से रोकने के इंतजाम किए जाते तो यह स्थिति देखने को नहीं मिलती। सरकारी स्तर पर जो भी इंतजाम किए जाते हैं वह नाकाम साबित हो रहे हैं। अभियान के तौर पर कभी बंदरों को पकड़कर बाडे में रखने की व्यवस्था नहीं की गई है और न ही बंदरों की नसबंदी की योजना सफल हो पाई। यही कारण है कि बंदरों की तादाद आए दिन बढ़ती ही जा रही है। अब तो लोग शहरों में भी खाने-पीने की चीजें देकर बंदरों की आदत खराब कर रहे हैं।

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