अब समुद्र में और घातक होंगी भारतीय पनडुब्बियां

एआईपी तकनीक का सफल परीक्षण

नई दिल्ली (आरएनएस)। रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एक और कामयाबी हासिल की है, जिससे भारतीय नौसेना की ताकत में और इजाफा हो गया है। वहीं समुद्र में भारत की पनडुब्बियां और भी घातक हो जाएंगी।
डीआरडीओ ने आईएनएस करंज पनडुब्बी को भारतीय नौसेना में शामिल किए जाने के एक दिन पहले बीती रात को मुंबई में एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (एआईपी) तकनीक का सफल परीक्षण किया। इस परीक्षण नौसेना की ताकत में इजाफा करने वाला बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे भारतीय पनडुब्बियों को समुद्र के भीतर और भी अधिक घातक बना देगा। भारत के दुश्मनों को पता भी नहीं चलेगा और वे तबाह हो जाएंगे। एआईपी तकनीक पनडुब्बी को पानी के नीचे अधिक समय तक रहने की इजाजत देता है और एक परमाणु पनडुब्बी की तुलना में इसे शांत रखते हुए उप-सतह (सब-सरफेस) के प्लेटफॉर्म को और अधिक घातक बनाता है। भारतीय नौसेना ने अब अपने सभी कलवरी क्लास के गैर-परमाणु हथियारों में एआईपी तकनीक को अपग्रेड करने की योजना बना रही है। माना जा रहा है कि 2023 तक यह काम पूरा हो जाएगा।

इन देशों के पास है यह तकनीक
आत्मनिर्भर भारत अभियान की दिशा में एआईपी तकनीक का सफल परीक्षण बेहद अहम कदम है। भारत से पहले यह तकनीक अमेरिका, फ्रांस, चीन, ब्रिटेन और रूस के पास ही थी। डीआरडीओ की एआईपी तकनीक एक फॉस्फोरिक एसिड फ्यूल सेल पर आधारित है और अंतिम दो कलवरी क्लास पनडुब्बियों को इसके द्वारा संचालित किया जाएगा। मुंबई में सोमवार को एआईपी डिजाइन का परीक्षण भूमि पर किया गया।

इसलिए विशेष है यह तकनीक
एआईपी या मरीन प्रोपल्शन तकनीक गैर-परमाणु पनडुब्बियों को वायुमंडलीय ऑक्सीजन तक पहुंच के बिना संचालित करने की अनुमति देती है और पनडुब्बियों के डीजल-इलेक्ट्रिक प्रोपल्शन सिस्टम को बढ़ाती है। इसका मतलब है कि एआईपी फिटेड पनडुब्बी को अपनी बैटरी चार्ज करने के लिए सतह पर नहीं आना पड़ता है और यह लंबे समय तक पानी के नीचे रहता है। एक ओर जहां न्यूक्लियर सबमरीन जहां शिप रिएक्टर की वजह से शोर मचाती हैं, वहीं एआईपी तकनीक से लैस पनडुब्बी एक घातक चुप्पी बनाए रखती है। यह नई तकनीक भारतीय सबमरीन को और भी ज्यादा घातक बनाएंगी।

पाकिस्तान ने फ्रांस से मांगी थी यह तकनीक
डीआरडीओ की इस तकनीक को फ्रांस से मदद मिली है, जो कलवरी क्लास मैन्युफैक्चरिंग के संदर्भ में भारतीयों के संपर्क में थे। हालांकि, इसके लिए पाकिस्तान ने भी फ्रांस की तरफ रुख किया था, लेकिन तत्काल अनुरोधों के बावजूद फ्रांस ने पाकिस्तानी एजोस्टा 90 बी पनडुब्बियों को एआईपी तकनीक के साथ अपग्रेड नहीं करने का फैसला किया, जिसके बाद इस्लामाबाद को चीन या तुर्की की ओर जाने को मजबूर होना पड़ा।

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