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बागवानों के लिए प्रेरणास्रोत बने दुरगेेला के पूर्ण चंद

RNS INDIA NEWS 09/06/2021
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बागवानों ने बदले ”शाहपुरे दे जले खट्टे अंब“ लोकगीत के बोल
एक समय शाहपुर अपने अचारी और मिट्ठू आमों की बाग़वानी के लिये जगत् प्रसिद्ध था। शाहपुर के आमों की इस ख़ासयित को लोक ने अपने शब्दों में ढालकर इन्हें लोकगीतों की शक्ल दे दी। प्रदेश के लोकगायकों ने इन्हें अपने अंदाज़ में बयॉं करते हुए आम जनमानस में लोकप्रिय बना दिया। लेकिन अब शाहपुर आमों की बाग़वानी के साथ सेबों की बाग़वानी में हाथ आजमाते हुए अपनी अलग पहचान बना रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि लोग सेबों को किस तरह लोकगीतों में ढालते हैं।
शाहपुर तहसील के गांव दुरगेला के बाग़वान पूर्ण चंद ने प्रतिकूल भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद तीन सालों के भीतर सेबों के साथ कुछ ऐसा प्रयोग कर दिखाया कि अब वे आस-पास के बाग़वानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। अब क्षेत्र में जब भी सेब की उम्दा पैदावार का जि़क्र होता है तो पूर्ण चंद का नाम एक मिसाल के तौर पर लिया जाता है। पूर्ण चंद ने वर्ष 2018 में प्रदेश के बाग़वानी विभाग के मार्गदर्शन एवं सहयोग से सेब का बगीचा लगाया था। उनकी कड़ी मेहनत से दो वर्ष के भीतर पौधों में फल आने शुरू हो गए। उन्होंने गत वर्ष लगभग छः किवंटल सेब बेचा। उनके बाग़ीचे की विशेषता है कि वह अपने बाग़ीचे में किसी रासायनिक खाद या स्प्रे का प्रयोग नहीं करते। इसके स्थान पर वह विभिन्न तरह से बनाये जानी वाली जैविक खादें, जोकि दालों, किचन वेस्ट, ऑयल सीड, गौमूत्र तथा गोबर द्वारा बनाई जाती हैं, का ही प्रयोग करते हैं। वह यह सब ख़ुद ही तैयार करते हैं ।
पूर्ण चन्द कहते हैं कि इस बार सेब की फ़सल काफ़ी अच्छी थी। लेकिन पिछले दिनों हुई ओलावृष्टि तथा तूफ़ान से उन्हें नुक़सान पहुॅंचा है। लेकिन इसके बावजूद वह अब तक लगभग एक क्विंटल सेब बेच चुके हैं। सेबों की गुणवत्ता के चलते ख़रीददार उनके घर पर आकर ही सेब ख़रीद ले जाते हैं। उन्होंने ज़मीन लीज़ पर लेकर सेब के लगभग 25 हज़ार पौधौं की नर्सरी भी तैयार कर ली है। उनके पौधे गुजरात और महाराष्ट्र तक अपनी पहचान बना चुके हैं।
पूर्ण बताते हैं कि इस वर्ष सर्दियों के मौसम में उन्होंने लगभग दो से अढ़ाई हजार पौधे बेचे। इस दौरान क़रीब 25 परिवारों ने लगभग 50-50 पौधे लगाए हैं। वह सेब के पौधे लगाने में ख़ुद लोगों की मदद करते हैं। ग़ौरतलब है कि सेब के पौधे सर्दियों के मौसम में लगाए जाते हैं।
प्रदेश सरकार द्वारा पौधों पर सब्सिडी के अलावा एन्टी हेलनेट के लिए भी पूर्ण चन्द को 80 प्रतिशत उपदान दिया गया है। इस समय उन्हांेने 3-4 कनाल के बाग़ीचे में लगभग 150 अन्ना तथा डोरसेट प्रजाति के पौधे लगाए हैं। उन्होंने बाग़ीचे की सिंचाई हेतु एक जल भंडारण टैंक बनाया है। वह पौधों की सिंचाई आधुनिक तकनीक से बनाई वाटर गन से करते हैं, जिससे कम समय और जल से पूरे बाग़ीचे की सिंचाई हो जाती है। उन्होंने अपने बग़ीचे में ओलावृष्टि तथा पक्षियों से बचाव हेतु एन्टी हेलनेट भी लगाई है।
पूर्ण चन्द युवाओं से स्वरोज़गारी होने का आह्वान करते हुए कहते हैं कि वह अपनी ज़मीन को बंजर न छोड़ें और पारम्परिक खेती से हटकर बाग़वानी को अपनाकर सेब, कीवी और अमरूद आदि के पौधे लगाकर बाग़वानी शुरू करें। वह सेब के बग़ीचे लगाने में लोगों को पूर्ण सहयोग देते हैं। युवा प्रदेश सरकार द्वारा आरम्भ विभिन्न योजनाओं का लाभ उठाकर अपनी आजीविका सुदृढ़ कर सकते हैं। पूर्ण चन्द बताते हैं कि बाग़वानी विभाग के उपनिदेशक डॉ. कमलशील नेगी, विषयवाद विशेषज्ञ डॉ. संजय गुप्ता तथा बाग़वानी अधिकारी संजीव कटोच से उन्हें समय-समय पर मार्गदर्शन तथा सहयोग मिलता रहता है।
जि़ला काँगड़ा उद्यान विभाग के उपनिदेशक डॉ. कमलशील नेगी कहते हैं कि जि़ला काँगड़ा में 41 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बाग़वानी की जाती है। जि़ला में 47,000 हजार मीट्रिक टन फलों की पैदावार होती है। जि़ला में 530 हेक्टेयर भूमि पर सेब के पौधे लगाए गए हैं; जिसमें 330 मीट्रिक टन सेब का उत्पादन हो रहा है। सेब के बग़ीचे अभी कुछ वर्ष पहले ही लगाए गए हैं। अभी इसकी पैदावार कम है। उपनिदेशक ने बताया कि अधिकतर सेब के बग़ीचे बैजनाथ विकास खण्ड में लगाए गए हैं। जि़ला में लो चिलिंग वेरायटी, अन्ना और डोरसेट के पौधे लगाए गए हैं और इस कि़स्म के सेब 10 जून तक तैयार हो जाते हैं। इन दिनों प्रदेश के किसी भी हिस्से में सेब तैयार न होने के कारण बाग़वानों को बाज़ार में अच्छे दाम मिल जाते हैं।
विकास खण्ड, रैत के बागवानी विभाग के विषयवाद विशेषज्ञ डॉ. संजय गुप्ता कहते हैं कि पिछले तीन वर्षों से यहाँ के किसानों का रूझान बाग़वानी की ओर बढ़ा है। बाग़वानों ने सेब, कीवी तथा अमरूद के पौधे लगाए हैं। शाहपुर के दुरगेला, भनाला, बंडी, रजोल, डढम्ब आदि स्थानों के किसानों ने सेब के पौधे लगाए हैं। इन पौधों से फ़सल मिलना आरम्भ हो गई है। ये पौधे दो-तीन वर्ष के भीतर ही अपनी उपज देना आरम्भ कर देते हैं। लोग बाग़वानी को अपनाकर अपनी आजीविका का माध्यम बना सकते हैं। ऐसे उत्साही लोगों को प्रदेश सरकार के निर्देशानुसार उद्यान विभाग द्वारा हर सम्भव सहायता एवं मार्गदर्शन उपलब्ध करवाया जा रहा है।

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