सुंदरलाल बहुगुणा से लेकर पर्यावरणविद बनने का सफर

देहरादून। सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के टिहरी से 7 मील दूर भागीरथी नदी के पास बसे गांव में मरोड़ा में 9 जनवरी 1927 को हुआ। उनके पिता अम्बादत्त बहुगुणा टिहरी रियासत में वन अधिकारी थे, तो नाना अभय राम डोभाल राजभक्त जमीदार। लेकिन गांधी जी के शिष्य श्रीदेव सुमन ने टिहरी राजशाही के भक्त परिवार में जन्मे सुदर लाल के जीवन की दिशा ही बदल दी। वह तब महज 13 साल के थे जब टिहरी में श्रीदेव सुमन के संपर्क में आए। अपनी यात्रा के दौरान, सुंदर लाल बहुगुणा ने वन विनाश के परिणामों और वन संरक्षण के लाभों को बारीकी से समझा। उन्होंने देखा कि पेड़ों में मिट्टी को बांधने और पानी के संरक्षण की क्षमता होती है।
अंग्रेजों के लिए (जिन्होंने पहाडिय़ों में चीड़ फैलाई) और जिस वन विभाग से यह जुड़ा हुआ था, उनके लिए जंगल केवल लकड़ी, लिसा और व्यापार का एक स्रोत थे। उनका मानना था कि वनों का सबसे पहले उपयोग आस-पास रहने वाले लोगों के लिए होना चाहिए ताकि उन्हें भोजन, घास, लकड़ी और चारा आसानी से उपलब्ध हो सके। उन्होंने कहा कि वनों के वास्तविक लाभ मिट्टी, हवा और पानी हैं। इस सोच ने बाद में ‘चिपको आंदोलन’ के नारे को जन्म दिया। बहुगुणा के कार्य को पूरे विश्व में मान्यता मिली। इन्हें पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ प्रतिनिधि सभा को संबोधित करने का मौका मिला। अमेरिका, जापान, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी इंगलैंड, आ्ट्रिरया समेत सभी प्रमुख देशों में चिपको का संदेश फैलाने के लिए घूमे। बीबीसी ने इन पर ‘एक्सिंग द हिमालय’ फिल्म बनाई।

सुंदर लाल बहुगुणा को मिले पुरस्कार और सम्मान
वर्ष 1981 पद्मश्री ( इसे बहुगुणा ने नहीं लिया )
वर्ष 1986 जमनालाल बजाज पुरस्कार
वर्ष 1987 राइट लाइवलीहुड अवार्ड
वर्ष 1989 आईआईटी रुडक़ी द्वारा डीएससी की मानद उपाधि
वर्ष 2009 पद्मविभूषण इसके अलावा राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, शेरे कश्मीर अवार्ड समेत दर्जनों अन्य छोटे बड़ पुरस्कार भी इन्हें दिए गए। विश्वभारती विवि शांतिनिकेतन ने भी इन्हें डाकटरेट की मानद उपाधि प्रदान की।

सुंदर लाल बहुगुणा पर प्रमुख पुस्तकें
इकोलोजी इज द परमानेंट इकोनोमी ले: जार्ज जेम्स टेक्सास विवि
हिमालय में महात्मा गांधी के सिपाही सुंदर लाल बहुगुणा: केएस वाल्दिया
फारेस्ट एंड पीपुल्स : भारत डोगरा
धरती करे पुकार : राजकमल प्रकाशन

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