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चीन बना रहा विश्व का सबसे बड़ा बांध, सूख जाएंगे पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश!

RNS INDIA NEWS 08/02/2021
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पेइचिंग ,08 फरवरी। लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक भारतीय सरजमीं पर नजरें गड़ाए बैठा चीन अब भारतीय जलसंपदा पर कब्जा करने के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बांध बनाने जा रहा है। चीन तिब्बत से लेकर भारत तक बेहद पवित्र मानी जाने वाली यारलुंग त्सांग्पो या ब्रह्मपुत्र नदी पर 60 गीगावाट का महाकाय बांध बनाने की योजना में लग गया है। यह बांध तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र के उस प्राचीन इलाके में इलाके में बनाया जा रहा है जहां पर तिब्बत का पहला साम्राज्य पनपा था। चीन का लक्ष्य वर्ष 2060 कार्बन तटस्थता हासिल करने का है जिसके लिए वह तिब्बत में हाइड्रोपावर प्रॉजेक्ट पर पूरा जोर लगा रहा है। वह भी तब जब पूरे बांध का तिब्बत के लोग और पर्यावरणविद विरोध कर रहे हैं।

आइए जानते हैं कि ब्रह्मपुत्र पर बन रहे दुनिया के इस सबसे बड़े बांध का भारत पर क्या असर पड़ेगा…..

मूल रूप से तिब्बत की रहने वाली तेंजिन डोल्मे अब ऑस्ट्रेलिया में रहती हैं और तिब्बती भाषा पढ़ाती हैं। उन्हें चीनी दमन के बाद तिब्बत को छोडऩा पड़ा था। उन्होंने कहा कि तिब्बत में नदियों का सम्मान उनके खून के अंदर बसा है। तेंजिन कहती हैं कि जब हम इन नदियों में तैरते थे तो हमें कहा जाता था कि इन नदियों को बाथरूम की तरह से इस्तेमाल नहीं करें क्योंकि इनके पानी में देवियां वास करती हैं। पवित्र ब्रह्मपुत्र नदी को तिब्बती देवी दोर्जे फाग्मो का शरीर माना जाता है। तिब्बती संस्कृति में देवी दोर्जे का बहुत सम्मान है। तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट के पर्यावरण विशेषज्ञ टेंपा ग्यल्टसेन जमल्हा ने कहा कि नदियों के प्रति यह सम्मान सदियों पुराना है। उन्होंने कहा कि कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में तिब्बत पर चीन का कब्जा होने के बाद अब तिब्बती लोगों की अपनी जमीन पर कोई पकड़ नहीं रह गई है। टेंपा ने अलजजीरा से बातचीत में कहा कि चीनी कब्जे से पहले तिब्बत में कोई बांध नहीं था। ऐसा इसलिए नहीं था कि हम उसे बना नहीं सकते थे, बल्कि इसलिए था कि हम नदियों का सम्मान करते हैं।
टेंपा कहते हैं कि चीनी अपने विकास के लिए हर चीज करेंगे, वह भी जो अब तक वर्जित रहा है। यह निराशाजनक है और तिब्बतियों से इस बारे में कोई सलाह नहीं ली गई है। समुद्र तल से करीब 16404 फुट की ऊंचाई पर पश्चिम तिब्बत के ग्लेशियर से निकलने वाली यारलुंग त्सांग्पो या ब्रह्मपुत्र नदी दुनिया की सबसे ऊंची नदी है। ब्रह्मपुत्र नदी हिमालय के सीने को चीरते हुए पूर्वोत्तर भारत के रास्ते बांग्लादेश तक जाती है। ब्रह्मपुत्र नदी 8858 फुट गहरी घाटी बनाती है जो अमेरिका के ग्रैंड केनयॉन से दोगुना गहरी है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि इस सबसे बड़े बांध का राजनीतिक और पर्यावरणीय दुष्परिणाम सामने आ सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के पहले से ही हाइड्रो पावर के मामले में सरप्लस बिजली है लेकिन वह एक खास मकसद से इस विशालकाय बांध को बनाना चाहता है। नदी विशेषज्ञ ब्रियान इयलेर ने कहा कि इस बांध से बनी बिजली का इस्तेमाल चीन अपने नुकसान की भरपाई के लिए करना चाह रहा है जो उसे जीवाश्म ईंशन से स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढऩे से हो रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि चीन के थ्री जॉर्ज डैम की तुलना में यह ब्रह्मपुत्र पर बन रहा बांध तीन गुना ज्यादा बिजली पैदा कर सकता है। थ्री जॉर्ज डैम के बनने के बाद करीब 14 लाख लोगों को अपने घर को छोडक़र दूसरी जगह जाना पड़ा था। ब्रह्मपुत्र के आसपास चीन में बहुत कम आबादी निवास करती है लेकिन अब तक 2 हजार लोगों को दूसरी स्थान पर ले जाना पड़ा है। इस बांध को मेडोग काउंटी में बनाया जाएगा जिसकी आबादी करीब 14 हजार है। करीब 25 लाख वर्ग किलीमीटर में फैला तिब्बत का पठार न केवल प्राकृतिक संपदा से भरा है बल्कि कई और देशों से उसकी सीमा जुड़ती है। तीसरा ध्रुव कहे जाने वाले तिब्बत के पठार पर बर्फ पिघलने और जलस्रोतों से चीन, भारत और भूटान की करीब 1.8 अरब की आबादी की प्यास बुझती है। टेंपा कहते हैं कि तिब्बत के प्राकृतिक स्रोतों की वजह से ही चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने 70 साल पहले तिब्बत पर कब्जा किया था। भारत और चीन के बीच लद्दाख में तनाव के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि ब्रह्मपुत्र को लेकर विवाद शुरू हो सकता है। दरअसल, चीन से निकलने के बाद ब्रह्मपुत्र नदी भारत के अरुणाचल प्रदेश और असम के रास्ते बांग्लादेश में प्रवेश करती है। चीन दुनिया का यह सबसे विशाल बांध भारत की जमीन से मात्र 30 किमी दूर बना रहा है। टेंपा कहते हैं कि इस बांध को चीन निश्चित रूप से एक राजनीतिक टूल के रूप में इस्तेमाल करेगा। यही वजह है कि भारत ने इस बांध पर चिंता जताई है। उधर, चीन और भारत के बीच विवाद की आशंका के बाद अमेरिका इस पूरे मामले में आगे आया है। अमेरिका के द तिब्बत पॉलिसी एंड सपोर्ट एक्ट में वादा किया गया है कि जल सुरक्षा के लिए वह एक क्षेत्रीय ढांचा बनाने को प्रोत्साहित करेगा। सभी देशों के बीच समझौतों के लिए मदद करेगा। उधर, भारत और बांग्लादेश की चिंताओं के बीच चीन ने कहा है कि वह ब्रह्मपुत्र नदी के बारे में आगे भी सूचनाएं देता रहेगा। चीन भले ही यह दावा करे लेकिन मेकांग नदी पर उसके 11 बांध बनाने से दक्षिण-पूर्वी एशिया के कई देशों जैसे म्यांमार, लाओस में पानी की भारी की कमी हो गई है। अब यही खतरा भारत और बांग्लादेश पर भी मंडराने लगा है।
दरअसल, ब्रह्मपुत्र और सिंधु दोनों ही विशाल नदियां तिब्बत से शुरू होती हैं। सिंधु नदी पश्चिमोत्तर भारत से होकर पाकिस्तान के रास्ते अरब सागर में गिरती है। वहीं ब्रह्मपुत्र नदी पूर्वोत्तर भारत के रास्ते बांग्लादेश में जाती है। ये दोनों ही नदियां दुनिया की सबसे विशाल नदियों में शामिल हैं। चीन कई साल से ब्रह्मपुत्र नदी की दिशा को बदलने में लगा हुआ है। चीन ब्रह्मपुत्र नदी को यारलुंग जांगबो कहता है जो भूटान, अरुणाचल प्रदेश से होकर बहती है। ब्रह्मपुत्र और सिंधु दोनों ही नदियां चीन के शिंजियांग इलाके से निकलती हैं। सिंधु नदी लद्दाख के रास्ते पाकिस्तान में जाती है। अमेरिकी अखबार इपोच टाइम्स से बातचीत में लंदन के साउथ एशिया इंस्टीट्यूट के डॉक्टर बुरजिन वाघमार ने कहा, वर्तमान प्रॉजेक्ट में ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को 1000 किलोमीटर लंबी सुरंग बनाकर तिब्बत के पठार से ले जाते हुए तकलमकान तक ले जाना है। तकलमकान दक्षिण-पश्चिम शिंजियांग का रेगिस्तानी इलाका है। बताया जा रहा है कि 600 किलोमीटर लंबी यून्नान सुरंग का निर्माण अगस्त 2017 में शुरू हुआ था। इस परियोजना पर 11.7 अरब डॉलर का खर्च आ रहा है।
जुलाई वर्ष 2017 में इसकी पुष्टि की थी कि चीन के 20 विशेषज्ञ जुलाई 2017 में शिंजियांग की राजधानी उरुमेकी में मिले थे और नदियों के बहाव को तिब्बत से मोडक़र शिंजियांग की ओर करने पर चर्चा की थी। चीनी इंजिनियरों का कहना है कि वे शिंजियांग को अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य की तर्ज पर विकसित करना चाहते हैं। इसके लिए 1000 किमी लंबी सुरंग के जरिए शिंजियांग में विशाल झरना बनाना चाहते हैं। दरअसल, चीन अब अपने पूर्वी क्षेत्र के विकास के बाद पश्चिमी इलाके में विकास को बढ़ावा देना चाहता है जो अभी काफी पिछड़ा हुआ है। शिंजियांग में पानी की भारी कमी है। इस कमी को तिब्बत से पानी लाकर पूरा किया जाएगा। तिब्बत से शिंजियांग तक पानी ले जाने वाली यह सुरंग बेहद खास होगी। इसको बनाने में प्रति किमी 14 करोड़ 73 लाख डॉलर का खर्च आएगा। इसके सुरंग के जरिए हर साल 10 से 15 अरब टन पानी भेजा जा सकेगा। उधर, विशेषज्ञों का कहना है कि इस सुरंग से जैव विविधता बर्बाद हो जाएगी और भूकंप के आने का भी खतरा रहेगा। इतिहास में पहले भी इस तरह के प्रयास हुए हैं लेकिन उसका प्रभाव बहुत ही विनाशकारी रहा है।

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