किसानों के खेत तक पहुंचेगा विज्ञान, वैज्ञानिक अब सप्ताह में तीन दिन करेंगे दौरा

नई दिल्ली (आरएनएस)। भारत सरकार ने देश के कृषि क्षेत्र को सशक्त बनाने और किसानों को वैज्ञानिक तकनीकों से जोड़ने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है. इसके तहत अब वैज्ञानिक सप्ताह में तीन दिन खेतों में जाकर किसानों से सीधी बातचीत करेंगे और उन्हें नवीनतम कृषि तकनीकों, बीजों की गुणवत्ता, मृदा परीक्षण, जल प्रबंधन, फसल रोग नियंत्रण और उन्नत खेती विधियों की जानकारी देंगे. इस निर्णय का उद्देश्य पारंपरिक खेती को वैज्ञानिक आधार पर सुदृढ़ करना और किसानों की आमदनी को बढ़ाना है.
आईसीएआर-आईएआरआई के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आर.एस. बाना के अनुसार, जब वैज्ञानिक खेतों में जाकर किसानों से सीधा संवाद करते हैं, तो न केवल वैज्ञानिक शोध का सही उपयोग होता है, बल्कि किसानों की जमीनी समस्याओं को भी वास्तविक समय में समझा जा सकता है. सरकार ने यह भी तय किया है कि कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) को इस पहल का मुख्य केंद्र बनाया जाएगा. हर जिले में केवीके एक नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगा, जो इस अभियान का संचालन करेगा.
इस योजना का एक पायलट चरण पहले ही लागू किया जा चुका है, जिसमें 2,170 वैज्ञानिकों की टीमों ने 1.42 लाख गांवों का दौरा किया और 1.34 करोड़ किसानों से सीधे संवाद स्थापित किया. किसानों ने बताया कि इस पहल से उन्हें अपने खेतों में सुधार के लिए ठोस मार्गदर्शन मिला. उत्तर प्रदेश के किसान अमरपाल ने कहा, गांव में जब वैज्ञानिक आए और हमें मिट्टी परीक्षण, बीज चयन और जल प्रबंधन की जानकारी दी, तो हमारी समझ में आया कि हम विज्ञान के सहारे अपनी खेती को और बेहतर बना सकते हैं.
हालांकि यह पहल स्वागत योग्य है, कुछ वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि सप्ताह में तीन दिन फील्ड विजिट की अपेक्षा सप्ताह में एक या दो दिन तय किए जाएं ताकि अन्य शोध कार्यों पर असर न पड़े. डॉ. अमित शर्मा (केवीके जम्मू) का कहना है, किसानों से संवाद करना ज़रूरी है, लेकिन हमें एक संतुलन बनाना होगा ताकि अनुसंधान और फील्ड वर्क दोनों सुचारू रूप से चलें.
राकेश कुमार (केवीके उजवा, दिल्ली) ने बताया कि अभी तक कोई स्पष्ट कार्य योजना (लेआउट प्लान) नहीं दी गई है, लेकिन वे लगातार किसानों के साथ संवाद बनाए हुए हैं.यह पहल न केवल किसानों को सशक्त बनाएगी, बल्कि वैज्ञानिक शोध को जमीन पर लागू करने का एक व्यावहारिक मॉडल भी प्रस्तुत करेगी. अगर इसे योजनाबद्ध तरीके से क्रियान्वित किया गया, तो यह भारत की कृषि प्रणाली में दीर्घकालिक और सतत सुधार ला सकती है. किसानों और वैज्ञानिकों के बीच की यह नई साझेदारी आने वाले समय में देश की खाद्य सुरक्षा, उत्पादन क्षमता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने में मील का पत्थर साबित हो सकती है.

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