उत्तराखंड की समृद्ध लोकविरासत को संजोए रखने के मद्देनजर सरकार संजीदा
देहरादून। उत्तराखंड की समृद्ध लोकविरासत को संजोए रखने के मद्देनजर सरकार संजीदा हो गई है। इस कड़ी में पारंपरिक ढोल वादकों के उत्थान और उनके कला कौशल को संरक्षण-प्रोत्साहन देने के लिए निश्शुल्क वाद्य यंत्रों और पांरपरिक वेशभूषा का वितरण समेत अन्य कदम उठाए जा रहे हैं। यह किसी से छिपा नहीं है कि बदली परिस्थितियों का असर यहां की लोक कलाओं पर भी पड़ा है।
ढोल वादकों की ही बात करें तो वर्तमान में इनकी संख्या अंगुलियों में गिनने लायक रह गई है। वजह ये कि राज्याश्रय के अभाव और इस लोककला को रोजगार से न जोड़े जाने के कारण यह विलुप्ति के कगार पर पहुंच रही है। ढोल वादन का पारंपरिक ज्ञान पुरानी पीढ़ी के साथ ही सिमट रहा है। नई पीढ़ी इसमें खास रुचि नहीं ले रही है तो इसके पीछे रोजगार का संकट भी सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। जाहिर है कि इस सबके चलते सरकार की पेशानी पर भी बल पडऩे लगे हैं। हालांकि, अब इस दिशा में सरकार संजीदा हुई है।
संस्कृति मंत्री सतपाल महाराज के अनुसार प्रदेश के गांवों में निवासरत ढोल वादकों के पुनरुत्थान और उनके कला कौशल को संरक्षण व प्रोत्साहन के लिए विभिन्न कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। अनुसूचित जाति उप योजना के अंतर्गत गुरु शिष्य परंपरा के तहत मूर्धन्य गुरुओं के द्वारा प्रदेशभर में विभिन्न स्थानों पर छह माह के प्रशिक्षण कार्यशालाओं का आयोजन किया जा रहा है। महाराज ने बताया कि अनुसूचित जाति के लोक कलाकारों के संरक्षण के साथ ही इन्हें निश्शुल्क वाद्य यंत्रों और वेशभूषा का वितरण का कार्य जारी है।
इसके अलावा अनुसूचित जाति बहुल गांवों में सांस्कृतिक केंद्रों का निर्माण किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ढोल वादकों को लेकर सरकार पूरी तरह संजीदा है। उनकी कला को संजोये रखने के साथ ही ढोल वादकों को संरक्षण देना सरकार की प्राथमिकता है। उन्हें रोजगारपरक कार्यक्रमों से जोडऩे की दिशा में भी प्रयास किए जा रहे हैं।91 ढोल वादकों को पेंशन
प्रदेशभर में ढोल वादकों की संख्या बेहद कम रह गई है। आंकड़े इसकी तस्दीक करते हैं। सरकार की ओर से ढोल वादकों को प्रतिमाह दी जाने वाली तीन हजार रुपये पेंशन का ही जिक्र करें तो महज 91 ढोल वादक ही पेंशन ले रहे हैं।