उत्तराखण्ड के नए सीएम तीरथ सिंह के सामने होंगी कई चुनौतियां

देहरादून। उत्तराखंड में भाजपा विधायकों में पनपे असंतोष को काबू करने के लिए शीर्ष नेतृत्व ने भले ही मुख्यमंत्री का चेहरा बदल दिया हो पर ऐसा भी नहीं कि इससे पार्टी की राह बहुत आसान हो जाएगी। उत्तराखंड में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में नए मुख्यमंत्री के सामने सरकार की छवि सुधारने, विधायकों को एकजुट रखने और पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने जैसी चुनौतियां खड़ी होंगी।
मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने के पीछे सबसे बड़ी वजह आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत दिलाना है। सूत्रों के अनुसार, पार्टी पर्यवेक्षकों ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि त्रिवेंद्र रावत के चेहरे पर चुनाव लडऩे से हार की आशंका है। इसके बाद पार्टी ने नए सीएम को लेकर कवायद शुरू कर दी। ऐसे में अब नए सीएम के सामने 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को जीत दिलाना सबसे बड़ी चुनौती होगी।
उत्तराखंड में पार्टी विधायक शुरू से ही अलग-अलग धड़े में बंटे हुए हैं। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के डर से विधायक चार वर्ष तक उपेक्षा सहते रहे पर अब चुनावी वर्ष में प्रवेश के साथ ही विधायक मुखर हो गए हैं। राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के पीछे ये भी एक बड़ी वजह है। ऐसे में अब खेमों में बंटी पार्टी और विधायकों के साथ संवाद करना और उन्हें एकजुट रखना भी किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
भाजपा के कार्यकर्ता मौजूदा सरकार की शुरूआत से ही दबी जुबान में काम नहीं होने की शिकायत करने लगे थे। चार सालों से पार्टी के कार्यकर्ताओं में इस वजह से निराशा का भाव पैदा हो गया था। लोगों के काम न होने से स्थानीय स्तर पर विधायकों और पार्टी के पदाधिकारियों को लोगों के सवालों का सामना करना पड़ रहा था। अब नए नेतृत्व के सामने सरकार की इस छवि को बदलने की चुनौती रहेगी। पार्टी कार्यकर्ताओं के जोश के बदौलत ही भाजपा राज्य में दोबारा सत्ता हासिल करने की स्थिति में आ सकती है।
भाजपा के अब तक चार वर्ष के कार्यकाल में विधायक व कार्यकर्ता हमेशा ही विकास कार्य नहीं होने की शिकायत करते रहे। मौजूदा वर्ष में कोरोना संक्रमण और उससे पहले आर्थिक स्थिति बेहतर नहीं होने की वजह से विकास कार्यों के लिए बजट का अभाव साफ दिखाई दे रहा था। राज्य में सभी प्रमुख काम केंद्रीय परियोजनाओं के तहत संचालित हो रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकार की ओर से कराए जा रहे विकास कार्य धरातल पर उतारना और उनमें तेजी लाना भी नए सीएम के लिए चुनौती होगा।
मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने अपने चार साल के कार्यकाल में गैरसैंण को लेकर काफी सक्रियता दिखाई। न केवल गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया बल्कि गैरसैंण को राज्य का तीसरा मंडल बनाने की घोषणा भी की गई। इसके साथ ही त्रिवेंद्र रावत ने गैरसैंण राजधानी क्षेत्र के चरणबद्ध विकास के लिए 25 हजार करोड़ का रोडमैप बनाने का भी निर्णय लिया था। नए सीएम के सामने अब गैरसैंण को लेकर अपनी स्थिति स्पष्ट करने और उस पर आगे बढऩे की चुनौती रहेगी।
नए मुख्यमंत्री के सामने गढ़वाल और कुमाऊं के बीच क्षेत्रीय संतुलन को साधने की चुनौती भी होगी। राज्य गठन के बाद ही भाजपा व कांग्रेस के सामने क्षेत्रीय संतुलन को साधना एक बड़ी चुनौती रही है। राज्य में नेतृत्व परिवर्तन के बाद भाजपा व नए सीएम के सामने यह एक बड़ी चुनौती रहेगी। इसके अलावा राज्य में जातीय संतुलन भी एक अहम मुद्दा है। इस पर भी नए सीएम को खरा उतरना होगा।
चार वर्ष के कार्यकाल में सीएम त्रिवेंद्र रावत की छवि अफसरों पर निर्भरता की बन गई थी। कई ऐसे मौके आए जब यह सामने आया कि अफसर किसी की नहीं सुन रहे। नौकरशाही बेलगाम हो रही है। विधायकों की शिकायत के बाद विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल ने मुख्य सचिव को पत्र भी भेजा था। मुख्य सचिव ने प्रोटोकॉल को लेकर अफसरों को पत्र लिखे पर स्थिति बहुत ज्यादा नहीं बदली। नए सीएम के सामने इस छवि व अफसरों की कार्यशैली को बदलने की सबसे बड़ी चुनौती होगी।
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र रावत को हटाकर मुख्यमंत्री का चेहरा बदलने से भारतीय जनता पार्टी के सभी क्षत्रप और विधायक संतुष्ट हो जाएंगे, ऐसा होने की संभावना कम ही है। खासकर कांग्रेस से भाजपा में आए नेताओं की महत्वाकांक्षाएं आगे भी बनी रहेंगी। बल्कि यूं कहें कि असंतोष पैदा कर मुख्यमंत्री बदलने में सफल होने के बाद ऐसे नेताओं का मनोबल सातवें आसमान पर होगा। ऐसे में नए मुख्यमंत्री के लिए ऐसे अति महत्वाकांक्षी नेताओं से पार पाना एक बड़ी चुनौती होगी।
राज्य के नए मुख्यमंत्री के सामने खुद को निवर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत से बेहतर साबित करने की भी चुनौती रहेगी। त्रिवेंद्र रावत पर शुरू से अफसरों को नियंत्रित न रख पाने और फैसला लेने में देरी जैसे आरोप लगते रहे। ऐसे में नए सीएम के सामने ऐसे आरोपों से बचने के लिए बेहतर प्रदर्शन का दबाव रहेगा।

 

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