उच्च न्यायालय का सख्त रुख: पंचायती चुनावों में ‘एक व्यक्ति, एक वोट’ के नियम पर जोर

राज्य निर्वाचन आयोग के 6 जुलाई के आदेश पर रोक
नैनीताल। उत्तराखण्ड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनावों से ठीक पहले उच्च न्यायालय ने राज्य निर्वाचन आयोग के एक अहम आदेश पर रोक लगाते हुए ‘एक व्यक्ति, एक मतदाता’ के सिद्धांत को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए हैं। यह आदेश बुधवार, 10 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश जे नरेंद्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने पारित किया।
यह फैसला रुद्रप्रयाग निवासी सामाजिक कार्यकर्ता एवं पत्रकार शक्ति सिंह बर्थवाल की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिजय नेगी ने अदालत को बताया कि 6 जुलाई को राज्य निर्वाचन आयोग ने एक स्पष्टीकरण जारी कर सभी जिला निर्वाचन अधिकारियों को यह छूट दे दी थी कि वे पंचायती राज अधिनियम की अन्य धाराओं के अंतर्गत नामांकन और मतदाता पंजीकरण से जुड़े आवेदनों की जांच करें।
नेगी ने तर्क दिया कि यह स्पष्टीकरण ‘एक व्यक्ति, एक मतदाता’ के सिद्धांत का स्पष्ट उल्लंघन है, क्योंकि भारत के चुनाव कानूनों के तहत कोई भी व्यक्ति एक समय में केवल एक ही स्थान का मतदाता हो सकता है और वह वहीं से चुनाव लड़ने का हकदार होता है।
खंडपीठ ने याचिकाकर्ता के तर्कों को स्वीकार करते हुए निर्वाचन आयोग के 6 जुलाई के आदेश पर रोक लगा दी। अदालत ने साफ किया कि पंचायती चुनाव चुनाव अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार ही कराए जाएंगे। साथ ही यह भी कहा कि अब यह जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की है कि वह संबंधित नामों की जांच दोबारा कराए या फिर आदेश की अवहेलना की स्थिति को उत्पन्न होने दे।
न्यायालय ने दो टूक कहा कि यदि कोई व्यक्ति दो स्थानों का मतदाता है, तो उसे एक स्थान से नाम हटाना होगा।