खनन से हजारों बीघा कृषि भूमि बंजर होने के कगार पर

हरिद्वार। लालढांग क्षेत्र की रवासन नदी में पिछले दो दशक से वन विकास निगम और निजी पट्टों की आड़ में मशीनी खनन से हजारों बीघा कृषि भूमि बंजर होने के कगार पर है। खनन के कारण रवासन नदी का तल 15 से 20 फीट गहरा हो गया है। जिस कारण खेतों में सिंचाई के लिए पानी नहीं आ रहा है। रसूलपुर मीठीबेरी, मंगोलपुरा, पीली पढ़ाव, नलोवाला, गेंड़ीखाता, तपडोवाली आदि आधा गांवों में प्राकृतिक तौर पर गुल नहर द्वारा सिंचाई होती रही है। किसानों ने रवासन नदी से पानी को खेतों तक लाने के लिए लालढांग मीठी बेरी गांव में लगभग पांच स्थानों पर छोटे-छोटे बांध बना रखे हैं लेकिन नदी का तल नीचे होने से अब खेतों में पानी नहीं आ पा रहा है। स्थानीय ग्रामीण किसान हुकम सिंह, कमलेश द्विवेदी, नरेश सैनी, ऋषिपाल सिह, असगर अली, यूनुस, योगेश सिंह, विपिन सिंह, रामकुमार आदि का कहना है कि अंधाधुंध खनन के कारण खेतों के लिए बनाई गई नहरों में पानी जाना बंद हो गया है। ग्राम प्रधान मीठी बेरी रसूलपुर जगपाल सिंह ग्रेवाल का कहना है कि पंचायत में कृषि सिंचाई के लिए पर्याप्त साधन नहीं है। लगभग 7 हजार बीघे की कृषि को मात्र 6 सरकारी नलकूप है। रवासन नदी में हुए खनन चुगान से नदी का पानी किसानों की पहुंच से दूर हो गया है। खनन का विरोध करने के बाद भी किसानों की कोई नहीं सुनता।स्थानीय विधायक यतीश्वरानंद का कहना है कि खनन-चुगान राज्य सरकार की खनन नीति के अंतर्गत कराया जाता है। जिसका एक कारण राजस्व प्राप्त करना भी है। यदि ग्रामीणों का रवासन नदी में खनन चुगान से नुकसान व संपत्ति को खतरा है तो उसके लिए वे स्वयं ग्रामीणों के साथ मिलकर इसका विरोध करेंगे। साथ ही कृषि सिंचाई को जल्द ही क्षेत्र में 3 नए नलकूप लगाए जाने का आश्वासन दिया। ढाई सौ बीघा खेती नदी में समाईनदी के गहराने के साथ-साथ लगभग 250 बीघा कृषि भूमि नदी में समा गई है। जिससे कई किसान भूमिहीन भी हो गए। खनन के लालच में लाखों की आय के चक्कर में किसानों का काफी नुकसान हो गया है।


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