जातियों का निर्माण किसी पंडित या किसी विद्वान ने नहीं किया: स्वामी यतींद्रानंद
हरिद्वार। संघ प्रमुख मोहन भागवत के ‘पंडितों ने जाति बनाई’ के बयान पर श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि जातियों का निर्माण किसी पंडित या किसी विद्वान ने नहीं किया। श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवत गीता के चौथे अध्याय में कहा है कि चार वर्ण मेरे द्वारा रचित हैं। लेकिन इनका आधार जन्म नहीं, गुण और कर्म है। इस संसार में चार प्रकार की प्रवृत्ति के मनुष्य हैं। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इसमें भी शूद्र वर्ण नहीं बल्कि एक अवस्था है। मंगलवार को प्रेस को जारी बयान में वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी ने कहा कि मनुष्य जब जन्म लेता है तो वह शुद्र अवस्था कहलाती है। फिर चाहे वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य किसी भी घर में जन्म क्यों न ले। शुद्र इसलिए क्योंकि वह सभी प्रकार के ज्ञान से वंचित है। जातियों का निर्माण समाज की रचना में हुआ। जो जिस कर्म को करने लगा उसका धंधा ही उसकी जाति हो गई। जैसे कपड़े सिलने वाला दर्जी, कपड़ा बुनने वाला जुलाहा, कपड़े धोने वाला धोबी, लोहे का काम करने वाला लोहार, लकड़ी का काम करने वाला बढ़ई, मिठाई बनाने वाला हलवाई, पढ़ाने वाला अध्यापक आदि। समाज की रचना में कोई भी वर्ण छोटा या बड़ा नहीं है। सबकी अपनी-अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है। जाति में भेदभाव यह समाज की मूर्खता का परिणाम है।