प्रायोगिक शोध की प्रक्रिया एवं प्रविधि से रूबरू हुए प्रतिभागी

सात दिवसीय ओरिएंटेशन कोर्स के दूसरे दिन भी जारी

शोध प्रविधि एवं उपागम के बारे में कराया अवगत

अल्मोड़ा। राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीईआरटी) व इंस्टीट्यूट आॅफ एडवांस स्टेडीज इन एजुकेशन अल्मोड़ा के तत्वावधान में सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय में आयोजित सात दिवसीय आॅनलाईन ओरिएंटेशन कोर्स के दूसरे दिन प्रतिभागियों को शोध प्रविधि एवं शोध चरणों के बारे में बारे में मास्टर ट्रेनरों के द्वारा विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई। वहीं, तीसरे और चैथे सत्र में वरिष्ठ शिक्षाविद् प्रो एनसी ढ़ौडियाल के द्वारा प्रायोगिक शोध की विविध पहलुओं के बारे में जानकारी दी गई।
दूसरे दिन की शुरूआत करते हुए लखनऊ विवि की डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन की डॉ किरण लता डंगवाल ने शोध के प्रकार, प्रविधि एवं महत्व के बारे में उदाहरणों के माध्यम से जानकारी दी। उन्होंने कहा कि जब कोई दो वस्तुएं, पदार्थ आपस में एक दूसरे से वैरी करतीं हैं, तो वैरी करने के कारण असल समस्या उत्पन्न होती है। उन्होंने शोध प्रविधि को प्रतिभागियों के साथ अंतः क्रिया के माध्यम से प्रभावशाली ढंग से सरल एवं बोधगम्य भाषा में समझाया। डॉ किरण लता डंगवाल ने बताया कि शोध करते समय हमें विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए, ताकि, शोध परिणाम का सामान्यीकरण गुणवत्ता पूर्ण ढंग से किया जा सके। वहीं, तीसरे एवं चैथे सत्र में प्रो एनसी ढ़़ौडियाल ने प्रायोगिक शोध को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि प्रायोगिक शोध वर्तमान समय में सर्वाधिक शक्तिशाली विधि है। इसको करने के लिए विशेष सावधानियां बरतनी पड़ती है। इस दौरान उन्होंने प्रायोगिक शोध को प्रभावित करने वाले गुणात्मक चर, मध्यस्थ चर, स्वतंत्र-परतंत्र चर, बाह्य चर आदि चरों के बारे में विस्तार पूर्वक जानकारी दी। तीसरे सत्र में प्योर एक्सपेरिमेंटल रिसर्च, क्वासी एक्सपरिमेंटल रिसर्च सोलमन माॅडल के बारे में जानकारी दी। पहले दो सत्रों का संचालन डाॅ संगीता पंवार और तीसरे और चैथे सत्र का संचालन डाॅ नीलम कुमारी ने किया। इस अवसर पर अंकिता साह, हिमांशु शर्मा, गोविंद सुयाल, श्रृंखला चावला आदि ने सहयोग दिया।

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