पत्रकारों की बढ़ती शामत
दुनिया भर में पत्रकारिता एक जोखिम भरा काम बनती जा रही है। इस वर्ष ये खतरा और बढ़ गया। न्यूयॉर्क स्थित कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) की एक ताजा रिपोर्ट मुताबिक इस साल कम से कम 30 पत्रकारों की हत्या हुई। इनमें से 21 को तो साफ तौर पर बदला लेने के लिए मारा गया। 2019 में दुनिया भर में ऐसे 10 मामले सामने आए थे। सीपीजे एक बयान में कहा कि यह देखना भयावह है कि बीते एक साल में पत्रकारों की दोगुनी हत्याएं हुई हैं। ये बढ़ोतरी दिखाती है कि बेखौफ होकर पत्रकारों से बदला लेने की प्रवृत्ति से लडऩे में अंतरराष्ट्रीय समुदाय नाकाम हुआ है। रिपोर्ट में कई भयानक मिसालों का जिक्र है। मसलन, अफगानिस्तान के गजनी शहर में पत्रकार रहमतुल्लाह नेकजाद अपने घर के पास ही मौजूद मस्जिद की तरफ जा रहे थे। तभी साइलेंसर वाली एक पिस्तौल से उन्हें गोली मारी गई। अफगान पत्रकार समिति के प्रमुख रह चुके नेकजाद की मौके पर ही मौत हो गई।
नेकजाद एसोसिएटेड प्रेस न्यूज एजेंसी के लिए बतौर फ्रीलांस पत्रकार काम करते थे। दो महीनों में यह तीसरा मामला था, जब अफगानिस्तान में किसी पत्रकार की हत्या हुई। नेकजाद की हत्या की जिम्मेदारी किसी संगठन ने नहीं ली। तालिबान ने एक बयान जारी कर नेकजाद की मौत को देश के लिए क्षति बताया। तो फिर सवाल उठा कि आखिर उनकी हत्या के पीछे किसका हाथ है। अफगानिस्तान के मुकाबले काफी शांत कहे जाने वाले कई देशों में भी पत्रकारों पर हमले बढ़े हैं। भारत में भी 2020 में बदला लेने के लिए दो पत्रकारों की हत्या की गई। वहीं फिलीपींस में 2020 में तीन पत्रकारों की हत्या की गई। ईरान में हाल ही में रुहोल्लाह जाम नाम के पत्रकार को मौत को फांसी दे दी गई। रुहोल्लाह ने 2017 में सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान रिपोर्टिंग की थी। मेक्सिको में पत्रकार और आम लोग ड्रग्स माफिया के गैंगवॉर का और ज्यादा शिकार बनने लगे हैं। मेक्सिको में इस साल ड्रग्स से जुड़ी हिंसा के चलते 31,000 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। सीपीजे के मुताबिक कोरोना वायरस महामारी अगर नहीं आती, तो यह संख्या बढ़ भी सकती थी। कोरोना के कारण कई इलाकों में पत्रकारों की आवाजाही प्रभावित रही। पहले पत्रकारों की हत्या एक बड़ा मसला बनती थी। लेकिन अब इसे सामान्य घटना माना जाने लगा है। आखिर क्यों?