पर्वतीय कृषि से सम्बंधित पादप कीट, रोगजनक पहचान पर व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यशाला का उद्घाटन
अल्मोड़ा। भाकृअनुप-विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा में डीएसटी- विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित त्वरित विज्ञान योजना के तहत “पर्वतीय कृषि से जुड़े पादप कीट/रोगज़नक़ पहचान पर 10 दिवसीय पर व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया जा रहा है। कार्यशाला का उद्घाटन 20 दिसंबर को भाकृअनुप- विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रयोगात्मक प्रक्षेत्र हवालबाग में किया गया। उद्घाटन समारोह में डॉ. लक्ष्मी कांत, निदेशक, भाकृअनुप- विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, अल्मोड़ा, डॉ. जे.के. बिष्ट, प्रभागाध्यक्ष, फसल उत्पादन प्रभाग, डॉ. एन.के. हेडाऊ, प्रभागाध्यक्ष, फसल सुधार विभाग, डॉ. के.के. मिश्रा, प्रभागाध्यक्ष, फसल सुरक्षा विभाग और डॉ बी एम पांडे, अनुभागध्यक्ष, सामाजिक विज्ञान अनुभाग सम्मिलित हुए। निदेशक डॉ लक्ष्मी कांत ने सभी प्रतिभागियों को संस्थान की उपलब्धियों , इसके ऐतिहासिक महत्व, आकांक्षाओं और 98वर्ष के सफल कार्यकाल से अवगत कराया।उन्होंने 112 आवेदकों में से चयनित सभी 20 प्रतिभागियों को बधाई दी। उन्होंने इस कार्यक्रम से लाभान्वित होने के लिए प्रतिभागियों से कार्यशाला में सक्रिय रूप से प्रतिभाग करने की अपील की और कार्यशाला की सफलता की कामना की और प्रतिभागियों को शैक्षणिक रूप से परिसर में सीखने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम के आयोजक डॉ. आशीष कुमार सिंह, वैज्ञानिक, नेमाटोलॉजी ने सभी का स्वागत करते हुए कार्यशाला के महत्व के बारे में अवगत कराया। प्रधान वैज्ञानिक डॉ. एन.के. हेडाऊ ने पर्वतीय कृषि में कीट/रोगजनक निदान के महत्व का वर्णन किया। प्रधान वैज्ञानिक डॉ. जे.के. बिष्ट ने बदलते जलवायु परिदृश्य से संबंधित क्षेत्रों में पौधों की बीमारियों, नेमाटोड और कीट के महत्व को बताया और बताया कि कैसे वे लंबे समय से एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। प्रधान वैज्ञानिक डॉ. के.के. मिश्रा ने गेहूँ के रतुआ रोग में विभिन्न नैदानिक तकनीकों की भूमिका पर बल दिया।प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बी.एम. पांडेय ने बताया कि वर्तमान कृषि में फसल सुरक्षा बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है और किसानों की समस्याओं को दूर करने के लिए सभी को इसके लक्षण और निदान की जानकारी होनी चाहिए। पर्वतीय कृषि से जुड़े कीट/रोगज़नक़ निदान तकनीक प्रदान करने के लिए कार्यशाला को विशेष रूप से स्नातकोत्तर और पीएचडी छात्रों के लिए प्रारूपित किया गया है। यह 10 दिवसीय पाठ्यक्रम कीट, सूत्रकृमि और रोग निदान तकनीक पर विभिन्न व्याख्यानों के साथ- साथ प्रशिक्षुओं में दक्षता विकसित करने हेतु में भी सफल होगा क्योंकि इसमें विशेषज्ञों द्वारा प्रतिभागियों से व्यावहारिक अभ्यास भी कराया जायेगा । इस कार्यशाला में विभिन्न राज्यों नामतः हिमाचल प्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू, राजस्थान के स्नातकोत्तर व् पीएचडी के 20 छात्र भाग ले रहे हैं। कार्यक्रम के अंत में, डॉ गौरव वर्मा, प्रशिक्षण समन्वयक ने सभी आमंत्रित गणमान्य व्यक्तियों, प्रतिभागियों को अपनी गरिमामयी उपस्थिति से इस अवसर की शोभा बढ़ाने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने इस कार्यशाल को आयोजित करने के लिए प्रायोजन हेतु डीएसटी- विज्ञान और इंजीनियरिंग अनुसंधान बोर्ड (एसईआरबी), नई दिल्ली को भी धन्यवाद दिया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. आशीष कुमार सिंह, डॉ. गौरव वर्मा एवं डॉ. केके मिश्रा हैं।