40 सालों बाद नेपाल को मिला उसका जियोस्टेशनरी ऑर्बिटल स्लॉट, अब सैटेलाइट की तैयारी

काठमांडू। चार दशक के बाद नेपाल को उसका जियोस्टेशनरी ऑर्बिटल स्लॉट मिला है। यानी नेपाल को धरती के ऊपर अंतरिक्ष में अपने सैटेलाइट्स लॉन्च करने के लिए एक कक्षा निर्धारित की गई है। जिसके बाद अब नेपाल अपने सैटेलाइट्स लॉन्च कर सकता है। इसे लेकर नेपाल टेलीकम्यूनिकेशन अथॉरिटी अपना सैटेलाइट छोडऩे की तैयारी कर रहा है। वहीं खुद की सैटेलाइट छोडऩे से नेपाल को करोड़ों रुपयों की बचत होगी। नेपाल की संचार व्यवस्था, ब्रॉडकास्ट और एविएशन को लेकर पहले सैटेलाइट की तैयारी में जुट गया है। इंटरनेशनल टेलीकम्यूनिकेशन यूनियन ने नेपाल को 1984 में ऑर्बिटल स्लॉट दिया था, लेकिन धरती के ऊपर कक्षाओं में ज्यादा ट्रैफिक होने की वजह से उसे सैटेलाइट छोडऩे की अनुमति नहीं मिल रही थी। अब नेपाल में कनेक्टिविटी बढ़ रही है। नई टेलीकम्युनिकेशन पॉलिसी आ रही है। इसलिए नेपाल की सरकार ने पिछले साल सितंबर में से उसका स्लॉट देने की अनुमति मांगी थी, जो अब उसे मिल गई है। हृञ्ज्र के मिन प्रसाद अरयाल ने नेपाली टाइम्स को बताया कि हमने अलग-अलग कंपनियों से बिड मंगाया है। उनसे जियोस्टेशनरी सैटेलाइट बनाने और लॉन्च करने के लिए कहा है। हम इसके साथ ही इससे संबंधित नए रेगुलेटरी नियम भी बनाएंगे। सैटेलाइट को लेकर सलाह देने के लिए नेपाल सरकार के सामने भारत, चीन, यूके, फ्रांस, सिंगापुर, यूएई और जर्मनी ने अपनी तरफ से सहमति दी है। अरयाल ने कहा कि हम उस देश का चयन करेंगे जिसके पास 50 फीसदी अनुभव हो, 40 फीसदी योग्यता और 10 फीसदी टेक्निकल और आर्थिक क्षमता मजबूत होगी। इनमें से जिस देश का चयन नेपाल की सरकार करेगी, वो हृञ्ज्र को ये बताएगा कि उसे किराए पर सैटेलाइट लेना चाहिए या खुद का बनाना चाहिए। साथ ही ये मदद भी करेगा कि साल 2022 तक सैटेलाइट बनाने और उसके लॉन्च करने के लिए क्या-क्या तरीके, कौन सी बेहतर कंपनी या देश हो सकता है।

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