नए-नए फ्लू व वायरसों से मनुष्य ले सीख

कोरोना के बाद देश में बर्ड फ्लू की आफत आन पड़ी है। बर्ड फ्लू से हालांकि सबसे ज्यादा जाने पक्षियों की जा रही हैं लेकिन ये फ्लू मनुष्यों के लिए भी जानलेवा हो जाता है। दक्षिण से लेकर उत्तर भारत तक अब तक करीब दर्जन भर राज्यों से पक्षियों के मरने की खबरें मिल चुकी हैं। पशुपालन एवं जीवविज्ञानी अब पक्षियों खासकर मुर्गियों-बत्तखों को मारकर जलाने या दबाने की प्रक्रिया पूरी करने में जुट गए हैं। भारत एक सात्विक एवं सनातनी परम्परा का देश है यहां यूं भी जीव हत्या पाप समझी जाती है। ऐसे में यहां मुर्गियों व बत्तखों, तीत्तर-बटेर का व्यवसायिक पालन व मांस बेचना ठीक नहीं है। भारतवासियों को चाहिए कि वह अपने शाकाहारी जीवन की और लौटें एवं विश्व को भी शाकाहारी होने का संदेश दें। कोरोना भी चीन के वुहान से एक मांस बाजार से फैला होना माना जाता है।
कोरोना, बर्ड फ्लू की तरह ही स्वाईन फ्लू सूअरों एवं मैड काऊ गायों से फैलता है। फिर भी पता नहीं क्यों पक्षियों, जानवरों को मारकर उसके मांस का कारोबार बढ़ाया जा रहा है। इसके उल्ट शाक-सब्ज्यिां, अनाज, मसाले मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता ही नहीं बढ़ाते बल्कि जड़ी-बूटियों व मसालों से बहुत सी दवाएं, काढ़े रोगों को ठीक भी करते हैं। मनुष्य की अनेकानेक लालसाओं का ही परिणाम है कि पूरा परिस्थितिकी तंत्र गड़बड़ा रहा है। मानव के मांस की भूख के चलते वन्य जीवन की हजारों प्रजातियां विलुप्त हो रही हैं और उनकी विलुप्ति से भविष्य में फसलों एवं वृक्षों की उत्पत्ति भी प्रभावित होगी। क्योंकि मधुमक्खियां व तितलियों जैसे कीटों की कमी के चलते फूल और फलों का उत्पादन गिर रहा है। इसी प्रकार पक्षियों की कमी के चलते कीड़े-मकौड़े बढ़ रहे हैं जो फसलों को नुक्सान पहुंचाते हैं।
बड़े पशुओं में गाय, गधे, लोमडिय़ां, बाघ आदि का अपना महत्व है। यहां बर्ड फ्लू की बात पर पूरे परिस्थितिकी तंत्र का जिक्र इसीलिए आवश्यक हो गया है कि मनुष्य को प्रकृति की और लौटना होगा। हर रोग का उपचार महज दवाईयां नहीं हैं। बहुत से रोग मनुष्य की आदतों के बदल जाने से ही गायब हो जाएंगे। मांसाहार विनाश का प्रतिबिंब है, जीव रक्षा सृजन की शुरूआत है। प्रकृति में हर जीव-जंतु, वनस्पति, मनुष्य की अपनी-अपनी विशेषताएं हैं। प्रकृति की विशेषताओं में भोजन, मल त्याग, पसीना, चलना-बैठना, जैसी जीवों की प्रक्रियाएं एक दूसरे के रोगों को ठीक करती है या नया जीवन सृजन करती हैं। जब मनुष्य प्रकृति के साथ एकाकार था तब उसे इतनी दुविधाएं व विपदाएं नहीं थी जितनी आज के शिक्षित व सुविधा सम्पन्न मनुष्य को आए दिन भुगतनी पड़ रही हैं।

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