कार्मिकों की स्थानान्तरण प्रक्रिया को शून्य किए जाने पर आपत्ति

देहरादून। प्रदेशीय जूनियर हाईस्कूल शिक्षक संघ उत्तराखंड ने वर्तमान में माह फरवरी 2021 से चल रही कार्मिकों की स्थानान्तरण प्रक्रिया को सत्र 2021-22 में शून्य किए जाने पर आपत्ति जताई। संघ के प्रदेश महामंत्री राजेंद्र बहुगुणा ने बताया कि पहले तो मात्र 10 फीसद कार्मिक, शिक्षकों के स्थानान्तरण का ही प्राविधान किया गया है, उस पर भी पिछले कई स्थानान्तरण सत्र में क्रियान्यवयन नहीं किया गया। इससे विशेष कर दशकों से दुर्गम अति दुर्गम क्षेत्रों में कार्यरत शिक्षकों के साथ नाइंसाफी है।
एक बयान में उन्होंने कहा कि पहले कार्मिकों से आवेदन मांगे गए। कोविड 19 की वर्तमान में यद्यपि जटिल समस्याएं हैं, लेकिन सकारात्मक रूप में इनका क्रियान्यवयन सामान्य परिस्थितियां आने पर तो हो सकता था। दूसरी ओर अधिनियम के धारा- 27 के नाम पर विगत वर्षों से चल रहे स्थानान्तरण जगजाहिर हैं। आम कार्मिक, शिक्षक को स्थानान्तरण अधिनियम के नाम पर भी न्याय नहीं है।
संगठन की ओर से शीर्ष स्तर पर निरन्तर मांग की जाती रही है कि पदोन्नति स्थानान्तरण में काउंसलिंग की अनिवार्यता हो, रिक्त पदों के सापेक्ष स्थानान्तरण, विद्यालयों के वास्तविक परिस्थितिजन्य कोटीकरण, गम्भीर बिमारी के यथोचित प्राविधान, महिला कर्मी को 50 वर्ष एवं पुरुष बर्ग को 52 वर्ष में अनिवार्य स्थानान्तरण से छूट, जनपदीय सेवा काडर की स्थिति में एक निश्चित सेवा अवधि में सम्बन्धित शिक्षकों को अपने गृह जनपद में स्थानान्तरण अवसर प्रदान किया जाना चाहिए।
साथ ही मैदानी जनपद, जहां सम्पूर्ण सुगम होने की स्थिति में प्रथम नियुक्ति या पदोन्नति में दुर्गम की शर्तों का पालन कैसे निर्धारित हो। महत्वपूर्ण विषयों पर सरकार या शासन ने कभी गम्भीरता पूर्वक विचार ही नहीं किया । शिक्षक एवं कार्मिकों ने विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितिजन्य राज्य में पारदर्शी एवं निष्पक्ष स्थानान्तरणों के लिए अधिनियम, एक्ट की भरपूर पैरवी की थी। उसके बाद भी आम शिक्षक आज भी स्थानान्तरण से महरुम हैं।

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